कुमाऊँ
कही आप उत्तराखंड में तो नही हो ? —-कविता
कविता का शीर्षक है, कही आप उत्तराखंड में तो नही हो ?
बारिश की बूदें
जून का महीना
ठंड का एहसास
छुरमुर-छुरमुर
उगती हरी झाड़िया
जवान होती घास।
बारात लेकर आते कीड़े-मकोड़े
आम की डाली पर लटकते बौरे
घर के आंगन में
खुशी से खिलती तुलसी
पानी से लबालब भरे
पोखर,तालाब,धारे,नौले ।
पावों में लगती गीली मिट्टी
धान की बालियों का सामूहिक नृत्य
मेहल के पेड़ों से
रक्षा कराते खेत
एक संपूर्ण प्रबन्धन ।
कागज़ की नाव खेते बच्चे
रंग-बिरंगी चिड़ियों की अठखेलियां
पंख फैलाकर उड़ती आकर्षक तीतिलिया ।
बादलों का आवागमन
घर के छत के ऊपर
पहाड़ की कोहनियों से
ऊपर उठता कोहरा
कई आकृतिया बनाता
बिगाड़ता
बरबक्स ध्यान खीचता ।
मानो बादलों से मिलने चला हो………
धरती-आसमान एक हुआ हो ।
दूर सफेद चाँदनी बिखेरता
तन्मय खड़ा हिमालय
याद दिलाता
आपके लोकेशन की
प्राकृतिक जीपीआरएस की ।
आप पहाड़ की गोद में हो
कही उत्तराखंड में तो नही……?
क्योकि तुम्हारा परिचय
अपरिचित नही ।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल‘ पिथोरागढ़
उत्तराखंड