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कुमाऊँ

अपनी अस्मिता से जुड़े रहे

उत्तराखंड या यूं कहूँ उत्तरांचल की सबसे बड़ी समस्या यह हैं कि यहाँ के लोग अपनी पहचान से भागते हैं और जो पहचान से चिपकने की कोशिश भी करते हैं वो ये नहीं जानते कि खुद को प्रस्तुत कैसे किया जाय ?
आज हमारा हाल यह हो गया कि हम दिल्ली, मुम्बई, गुजरात जाकर यह बताते है और जताते भी है कि भाई हम उत्तराखंड वाले है। हमें अपने को बताने,पहचानने के लिए सैकड़ो मील दूर जाकर कहना पड़ रहा है कि हम उत्तराखंडी है। बड़ा आश्चर्य लगता है। यह तो सीधे सीधे एक आइडेंटिटी क्राइसिस है। इससे बाहर निकलना पड़ेगा।


प्रवासी-उत्तराखंडी हो या उत्तराखंडवासी दोनों में ही उत्तराखंडी-अस्मिता और राजनैतिक-समझ का नितांत अभाव हैं .. असल में जब तक हम में उत्तराखंडी-अस्मिता और राजनैतिक-समझ डेवलप नहीं होगी हम खुद और उत्तराखंड के लिये कुछ भी नहीं कर सकते
तो हमने करना क्या हैं ??? किसके लिये करना हैं ?? क्या करना हैं ??? सर्वप्रथम हमें इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूढ़ने की कोशीश करनी हैं वो भी पूरी ईमानदारी से ….. ।
पलायन या बाहरियोंकीघुसपैठ जैसे मुद्दों पर हमने अधिकांश उत्तराखंडी-विचारकों औऱ ग्रुपो को रोते पाया होगा। पर सभी जगह इसका ठीकरा सरकार पर फोड़ इतिश्री कर ली जाती हैं। अंत में
हमारे स्थानीय-उत्तराखंडी-युवाओं का स्वरोजगार की तरफ झुकाव …. आज से 5 साल पहले तक सब्जी के फुटकर से थोक के व्यवसाय में कम था पर इन हालिया वर्षों में स्थानिय युवाओं ने कम से कम फुटकर में एक नई शुरुवात तो की है।साथ ही थोक-डिलीवरी में भी अपनी उपस्तिथि दर्ज करायी हैं।

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ऐसा ही कुछ सुखद अहसास ऑटोमोबाइल्स/बारबर/टेलरिंग जैसे धंधों में दिखा पर अभी इन धंधों में हमारी उपस्थिति नाममात्र की हैं
असल में पलायन और बाहरी-घुसपैठ का एकमात्र सफल उपाय ये ही हैं कि हम उन सभी धंधों में अपनी उपस्तिथि दर्ज करायें जिनसे वो बाहरी दस्तकें कम हो।
क्यों न हम उन युवाओं को प्रमोट करने की कोशिस करें जो इन धंधों में काम करना चाहते है और बाहरी प्रतिस्पर्धा को टक्कर देने का जज्बा रखते हो। क्योंकि अगर ऐसे युवाओं को स्थानीय लोगों का समर्थन मिलेगा तो यह प्रयास और सोच हर उत्तराखण्डी-युवा के मन में घर कर जायेगी की जब इन स्वरोजगारों में आर्थिक-लाभ और इज्जत दोनों हैं तो हम क्यों न अपनाये इन्हें कैरियर के तौर पर ??? और अगर सब ने ये अपना लिया तो अस्मिता के साथ -साथ आर्थिकी को भी आवश्यक पोषण मिलेगा।


सब लोग अपने आसपास के उन युवाओं के ऐसे प्रयासों को इस प्लेटफॉर्म पर साझा करे जिसमे वे अच्छा कर सकते है और उनमें बेहतर करने की क्षमता है।अस्मिता, संस्कृति, जान -पहचान भी तभी सुरक्षित रह पाती है जब हम आर्थिकी को स्थानीय स्तर पर फलने फूलने का अवसर देते है।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
बागेश्वर,उत्तराखंड
(लेखक सामाजिक सरोकारों एवं उत्तराखंड शिक्षा से संबद्ध रखते है)

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