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उत्तराखण्ड

पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे,एम्स में ली अंतिम सांस

देहरादून। उत्तराखंड से इस वक्त की बड़ी दुःखद ख़बर सामने आ रही है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे। कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से उनका निधन हो गया। उनका नौ मई से ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार चल रहा था। शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया । उन्होंने कहा बहुगुणा सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक थे।

सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी थी, साथ ही देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। वह पारिस्थितिकी को सबसे बड़ी आर्थिकी मानते थे। यही वजह भी है कि वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरू कर अलख जगाई थी। उनके निधन पर सभी प्रकृति प्रेमियों ने गहरा दुःख जताया है।

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