कुमाऊँ
इतिहास के पन्नों से: दानू जाति का अभ्युदय
बागेश्वर जनपद के आधे भाग को परगना दानपुर कहते थे। आज भी दानपुर, दनपुरिया नाम प्रचलित है। दानपुर के लोगों के बारे में कहा जाता है ये लोग हमेशा दूसरों की मदद और दान पुण्य के मामले में कभी पीछे नहीं रहते हैं। आज भी दानपुर में जाने वाले भूखे प्यासे को मदद की आस रहती है। कुछ लोगों का मानना है कि उस दौर में यहां दानू जाति के लोगों के अधिसंख्यक होने के कारण इस क्षेत्र का नाम दानपुर पड़ा ।
कहा जाता है कि बदियाकोट में स्थित आदिबद्री पीठ की स्थापना में दाणू का ही हाथ था। गढवाल के बंड नामक स्थान में मृग के वेश मे पीछा करते हुए जो दो पुरूष बदियाकोट तक आये थे वे दाणू लोगों के पूर्वज थे ।वे दोनों पुरूष बदियाकोट नामक स्थान में बसकर मां की पूजा अर्चना करने लगे जो कि माता ने स्वयं कहा था । राहुल संस्कृतायन के अनुसार ये दोनों छलि तथा बलि दो भाई थे । इनके बारह पुत्र हुए जिन्हें बारह बदकोटी कहा गया ।
कालान्तर मे दाणू लोगो की संख्या बढ गयी व हिमालय की तलहटी वाले विशाल भू भाग मे फैल गये ।दानू लोगो को आठ थात दिये गये ।
कुमाऊं के इतिहास में पं बद्रीदत्त पांडे ने पं रामदत्त त्रिपाठी की पुस्तक के आधार पर लिखा है कि पुरा कालीन संवत् 2914 से 2950 तक एक भारद्वाज गोत्रीय क्षत्रिय दाणू कुमेर सेन का राज्य था ।बैजनाथ के पासगोमती किनारे उसका महल था ।81 साल की उम्र में दानपुर क्षेत्र में आखेट करते समय उसकी मृत्यु हो गयी ।उसके उत्तराधिकारी रणजीत सिह राजा बना । उसी समय कत्युरी सम्राट वासुदेव के पुत्र राजा आसन्ति देव जोशीमठ से नृसिंह देवता के शाप से जोशीमठ छोड़ कत्यूर आये । शत्रु को आते देख रणजीत सिह ने धर्म युद्ध के लिए कहा। कत्यूरी राजा ने चालाकी से काम लिया ।गोमती के किनारे मोष्ठे बिछाये गये ।उनके नीचे रीठे के दाने डाल दिये ।दोनों में मल्ल युद्ध हुआ ।रणजीत सिह हार गये ।उसे मल्ला महल नामक स्थान पर आजीवन पेंशन दे दी ।राजा आसन्ति जीते और राजा बन गये रणजीत सिह का 57 वर्ष की आयु मे निधन हो गया ।
तैलीहाट में कत्यूरी राजा ने राजधानी बनाई ।दाणू लोग हिमालत की तलहटी के गांवों की ओर चल दिये ।इसी लिए दानू लोग अधिकतर हिमालय के समानान्तर कीमू, झूनी, खाती,वाछम,सोराग, तीख,डौला, बदियाकोट, किलपारा, बोरा,समडर, भराकाने, कुवारी, हेमनी घेस बलाङ तोर्ती, बाण मंदोली, सुतौल, लेवाल, पुडकूनी,धारचुला,मुनस्यारी,सुमती, वैशानीआदि गावों मे रहते है ।लेकिन मूल स्थान बदियाकोट माना जाता है ।
दानू देव सोरागी वाछमी सभी दानू लोग ही है । दानू लोग अधिकांश फौज में रहे व अभी भी अधिकांश फौज में हैं। वीर चक्र विजेता दीवान सिह दानू थल के थे ।उनके नाम से रानीखेत मे दीवान सिह हाॅल बना है ।आजादी के बाद प्रथम सूबेदार बनने वाले के आर सी स्व हरीशचंद्र सिह बदियाकोट के निवासी थे। उन्हें कत्यूर में जागीर मिली थी ।राजनीति के क्षेत्र में स्व शेर सिह दानू थराली से विधायक बने थे ।शैक्षिक अर्द्धसैनिक बल व अन्य क्षेत्र मे भी दानू लोग काफी आगे है ।दानू लोगो ने जो तरक्की की वे उनकी मेहनत ईमानदारी व सत्यनिष्ठा के बल पर मिली ।क्योंकि ये क्षेत्र अति दुर्गम व बीहड़ रहे है। अपने पुरूषार्थ व मेहनत व पशुपालन के जरिये ये लोग आगे बढे व भविष्य मे भी देश व समाज सेवा में अग्रेत्तर रहेंगे।जय कुल देवी मां नन्दा भगवती ।इति शुभमस्तु ।
रिपोर्ट- प्रेम सिंह दानू