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कुमाऊँ

प्रतिभा/खोज: हँसनिक बहार, हरदा दगड़ भतर-भ्यार

देवभूमि उत्तराखंड कई विशेषताओं व खूबियों के लिए जाना जाता हैं। सर्वत्र बिखरे पहाड़ की श्रृंखलाओं की तरह ही यहाँ के जनमानस में भी प्रकृति ने हुनर भर कर बिखेरा हैं। जिस किसी कलाकार पर सत्ता या संगठन की नज़र पड़ी तो वह कुछ फलक तक तो ऊपर उठ जाता है। लेकिन सैकडों ऐसे कलाकार है जो गुमनामी के अंधकार सिमटकर रह गए हैं। पहचान के संकट ने इन हुनरमंदों को शेष दुनिया से पीछे कर दिया।
ऐसे ही एक हांस्य कलाकार हैं जिनका नाम हैं हरीश चंद्र तिवारी। ये हरदा के नाम से अधिक मशहूर हैं। जनपद पिथोरागढ़ जो मिनी कश्मीर के नाम से भी जाना जाता है के सुदूर तहसील बेरीनाग के गांव पभ्या के रहने वाले हरदा अपने इस क्षेत्र में अच्छे -खासे लोकप्रिय हैं। गांव का बच्चा -बच्चा इनको जनता हैं। हँसाना इनको इतना बखूबी से आता है। एक बार अगर इनकी संगति हो गयी तो लंबे समय तक आप इनको भूल नही सकते। अपनी पहाड़ी शैली में ये आपको गुदगुदाते रहेंगे और एक आकर्षकण इनके हांस्य के प्रति बना ही रहता हैं। हरदा जहाँ भी पहुँचते है ये पक्का मान लो हँसी के फव्वारें फूटने ही फूटने हैं। ये प्रतिभा उनमें जन्मजात लगती है। वरना ये कहा आसान था किसी के चेहरे पर मुस्कान ले आना। पहले के समय में रामलीला एक स्वस्थ जीवित मनोरंजन था। कई कलाकारों ने इसी मंच से राष्ट्रीय फलक तक अपनी पहचान बनाई। यही से हांस्य, विनोद के इस सिपाही ने अपनी लड़ाई शुरू की। देखते ही देखते जंग फतह करते चले गए। एक दौर में तो आलम यहाँ तक था रामलीलाओं में लोग हरदा को ही सुनने व देखने आते थे।

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इस लोकप्रियता का उदाहरण ये था की रामायण के अंतिम दिन पारायण जब लेखा-जोखा होता हैं तो सबसे अधिक इनाम हरदा के नाम होता हैं। इनकी मज़ेदार बातें, स्वांग, नखरें, नाटक किसी मंझे हुए कलाकार की तरह रहती हैं। अपनी इस कला के बलबूते ही हरदा क्षेत्र के तमाम रामलीलाओं में मांग में रहते हैं. उनके मज़ाकिया लहके पर गौर फरमाइए ‘ओ आम गिज़ कि फरका लि रीछा, बुबुलि नड़ाक-झिकाट नि कर राख’- ओ अम्मा आप उदास क्यों हो कही बूबू ने गुस्सा तो नही किया है और रावण के दरबार में मंत्री — जी हुज़ूर की कॉमेडी लाजवाब रहती । कई बार तो स्टेज में ही हरदा की मज़ेदार एक्टिंग से और पात्र भी हंसी नही रोक पाते। कुछ देर के लिए सिर्फ और सिर्फ हंसी ही होती दर्शक भी और पात्र भी। हरदा का यही अंदाज़ लोगों को बहुत भाता जिससे सैकड़ो की तादाद में लोग इनको सुनने को ,देखने को बेआतूर से रहते।

हिमालयन कार रैली के समय कुछ लोग जो सिर्फ प्रतिभाग करने आते है ने भी रामलीलाओं में हरदा का जोहर देखा है। त्रिपुरादेवी, राई-आगर, चौड़मन्या,दसाईथल, ख़िरमाण्डे,गंगोलीहाट, गणाई-गंगोली,सेराघाट, बेरीनाग,पुरानाथल, चौकोड़ी,डीडीहाट, धरमघर,पचार, पांखू, दशौली इत्यादि जगहों पर हरदा की हसोड़ी रंग जमाये रहती। इसके अतिरिक्त हरदा स्थानीय मेलों, जागरों, होली दीवाली एवं राज्य द्वारा आयोजित किये जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों /समारोहों में एक मुख्य कलाकार के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते है। इतना ही नही स्थानीय ईस्ट देव गंगनाथ की पूजा में वे भान बामडी जिसे कुमाऊनी में भान भी कहा जाता है कि भूमिका में रहते हैं यह एक कथा के अनुसार एक बार गंगनाथ जी जोगी बन गए. जिसका अवतार एक महिला में अवतरित हुआ.यह एक किस्म से गगनाथ जागर और पूजा में महिला डगरी होती हैं। क्रिएटिव राइटर, साहित्यकार व शिक्षक प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ ने जब टेलीफोनिक वार्तालाप किया तो मालूम चला कि वे काफी समय से लोगों का स्वस्थ मनोरंजन करते रहे हैं।

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उन्होंने त्रिपुरा सुंदरी नाट्य मंच के बैनर तले भी कई मज़ेदार व दिलचस्प कार्यक्रम दिए हैं. बागेश्वर,अल्मोड़ा व पिथोरागढ़ तीनो ज़िलों में हरदा ने अपनी काबिलियत सिद्ध की हैं. ऐसे कलाकारों को अगर थोड़ी मदद पहुच जाती तो समाज के लिए स्वस्थ मनोरंजन की अहमियत बड़ जाती। सोशल मीडिया के इस दौर में भले ही हम सुविधाओं से लदे है लेकिन हँसने/ हँसाने जैसे लोगो से दूर भी होते जा रहे हैं। जिसे किसी भी लहज़े में अच्छा नही कहा जा सकता है। स्टार्ट अप इंडिया हो या स्किल अप इंडिया हुनरमंदों को तलाशे, तराशे बिना प्रासंगिक नही लगता। सरकारों को भी चाहिए लोकल से ग्लोबल तक की दौड़ में लोकल को तो तरजीह दिया जाना चाहिए। इससे हम नए भारत के निर्माण में तो देख ही सकते हैं।

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