कुमाऊँ
मैं जलते दिए को बुझाता नही हूं…
गरुड़, बागेश्वर से वरिष्ठ साहित्यकार,कलमकार,कवि व गायक मोहन चंद्र जोशी ने एक शानदार गजल भेजी,प्रस्तुत है गजल
कैसी गुजरी है दिल पर बताता नहीं हूँ ।
चाहकर भी तुम्हें भूल पाता नहीं हूँ ।
हैं न जिगरी पुराने ना जुनूँ ना जिगर है ।
वो न बिसरी गली आता – जाता नहीं हूँ ।
जो था पहले यारो मैं अब भी वही हूँ।
मैं मुखौटों से चेहरा लगाता नहीं हूँ।।
हक से मिलता हूँ तुमसे मैं अपना समझ के।
दिल के भावों को तुमसे छुपाता नहीं हूँ।।
सबको अच्छा लगे मैं वही बोलता हूँ।
सुन बुराई मै खुद तिलमिलाता नहीं हूँ।।
हैं भरे भाव गहरे समुन्दर के मानिंद।
प्रेम करता हूँ सबसे छुपाता नहीं हूँ।।
है अंधेरो से नफरत लुभाए उजाले।
मैं जलते दियों को बुझाता नहीं हूँ।।
जो पसीने से वाकिफ न हो मेरे यारो।
ऐसी दौलत को घर पे बुलाता नहीं हूँ।।
सच से वाकिफ हूँ हूँ झूठ का नित्य बैरी।
नफरतों के तराने सुनाता नहीं हूँ।।
है जुदा मेरा अन्दाज इस दौर से कुछ ।
दिल में दुख भी बहुत पर जताता नहीं हूँ।
उम्र गुजरी लुटाने में बस प्यार ‘ मोहन ‘।
खोजता हूँ मगर प्यार पाता नहीं हूँ।।
–मोहन जोशी,गरुड़, बागेश्वर