उत्तराखण्ड
उत्तराखंड के सुंदर पहाड़ियों में समय से पहले खिलने लगा बुरांश
-हर किसी के मन को भाव विभोर भी कर देतेे हैैं बुरांस के जंगल
उत्तराखंड के पर्वतीय हिस्सों, खासतौर पर ऊंची-ऊंची पहाड़ियों में बुरांस समय से पहले ही खिलने लगा है।बदलते मौसम का असर बुरांस पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। गढ़वाल के चमोली तथा उत्तरकाशी जिले के बद्री केदार नाथ मोटर मार्ग हो या फिर कुमाऊं के कौसानी, बिनसर, मुक्तेश्वर आदि अनेक स्थानों में बुरांस समय से पहले खिलने लगा है। यही नहीं बुरांस के पेड़ों पर फूल पूरी तरह खिल गए हैं। बसंत ऋतु तक बुरांस के फूलों से जंगल पूरी तरह लद जाएंगे ऐसा प्रतीत होने लगा है।
आमतौर पर यहां बुरांस देर से खिलते हैं, लेकिन अब बदलते मौसम के कारण कहें या अन्य कोई बजह बुरांस जल्द ही खिलने लगे हैं। स्थानीय लोग भी बुरांस के खिलने पर कई तरह से अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि अमूमन बुरांस 20 मार्च से लेकर 25 अप्रैल के मध्य तक खिलता है, लेकिन मौसम में बदलाव के चलते बुरांस समय से पहले ही खिल रहा है, तो कई इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर भी बता रहे हैं। जबकि, कुछ लोगों का कहना है बर्फबारी और बारिश में गिरावट के चलते ये परिवर्तन देखने को मिला रहा है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि बुरांस की यह स्वाभाविक प्रक्रिया है।
बुरांस उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है। राज्य में बुरांस की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जो ऊंचाई और स्थान के हिसाब से अलग-अलग होती हैं। आमतौर पर बुरांस लाल, गुलाबी और सफेद रंग के देखने को मिलते हैं। जिसमें लाल रंग के बुरांस का उपयोग काफी ज्यादा किया जाता है। इसकी कई प्रजातियां पायी जाती हैं। दिल की बीमारी तथा लीवर के ईलाज में बुरांस अत्यधिक गुणकारी माना गया है। इसका जूस औषधीय गुणों से भरपूर है। चैत्र मास शुरू होते ही पहाड़ियों में खिले बुरांस की लालिमा को देख यहाँ के लोग अकसर भावुक हो उठते हैं। इसीलिए यहाँ का एक प्रसिद्ध लोकगीत भी है।
”पारी डाना बुरांसी फुली गे
मैंजे कुछी मेरी हीरू आईगे,,
यानि दूर-दूर से गांव को आने वाले रास्तों में बुरांसी फूलों की लालिमा को देख कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा होगा कि उनकी बहन, बेटी आ रही हो। इसलिए यह लोकगीत बनाया गया।