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उत्तराखण्ड

जानिए, कागज में लिखाकर कराई जाती है बच्चों की डिलीवरी

तीर्थराज सिंह मेहता
पिथौरागढ़। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उत्तराखंड सरकार भले ही लाख दावा करती रहे लेकिन पहाड़ के चिकित्सालयों की दशा सुधरने का नाम नहीं ले रही हैं। जहां चिकित्सकों की भारी कमी है वहीं व्यवस्थाओं पर भी अनेक सवाल खड़े होते हैं। यहां के गांवों की भोली भाली जानता के सामने बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर दी जाती हैं और धरातल में सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं होता।

पहाड़ की स्वास्थ्य सुविधा कैसे चल रही है इसे जानना, देखना है तो थल,पिथौरागढ़ के गौचर स्थित महिला उत्थान योजना के अंतर्गत बनाये गये महिला चिकित्सालय में आकर देख सकते हैं। यहां सुविधाओं के नाम पर सबकुछ शून्य है। वर्ष 2003 में तत्कालीन स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री तिलक राज बेहड़ ने इसका लोकार्पण किया था। तब से यह अस्पताल सुविधाओं के नाम पर बाट जो रहा है।
इनके पास स्टेशनरी का भी काफी अभाव है। प्रसूति के दौरान महिलाओं व उनके परिजनों से एक सामान्य कागज में जानिए क्या-क्या लिखाया जाता है। आवेदन में लिखाया जाता है कि ‘गौचर चिकित्सालय में न चिकित्सक हैं, न यहां खून इत्यादि की व्यवस्था है इसलिए प्रसव पीड़ा के दौरान अगर जच्चा-बच्चा के साथ कुछ भी हुआ तो इसकी जिम्मेदारी हमारी होगी, मतलब अस्पताल की व्यवस्था खुद ही बया कर रही है कि यहां के क्या हालात हैं। अपने बचाव के लिये अस्पताल की नर्स भी क्या कर सकती हैं। उनके लिए कागज में लिखाकर रखने के सिवाय कुछ भी नही रहा है। सवाल यह उठता है जब आपके पास व्यवस्था सही नहीं है तो ये अस्पताल खोले क्यों हैं, क्यों लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। चिकित्सक नहीं हैं तो व्यवस्था की जानी चाहिए। अन्यथा ऐसे अस्पतालों का क्या फायदा।

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