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उत्तराखण्ड

जानिए मां ‘पूर्णागिरि शक्तिपीठ’ का विशेष महत्व

संडे स्पेशल में हम आज आपको पूर्णागिरि मंदिर ले चलते हैं। हिमालय की गोद में बसा है देवभूमि उत्तराखंड का पूर्णागिरी मंदिर श्रद्धा व भक्ति का प्रमुख स्थल है। यहां हर साल लाखों भक्त मां पूर्णागिरि के दर्शन करने आते हैं। तीन माह तक मेले के दौरान प्रतिवर्ष यहां आने वाले लाखों भक्त मां के मंदिर में दर्शन कर लौटते हैं।
उत्तराखंड के टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर, समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मां पूर्णागिरि मंदिर अलौकिक एवं भव्य है। इस मंदिर को प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर सती माता की नाभि गिरी थी।
पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर शारदा नदी के पास स्थित है। पूर्णागिरी मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी खासा जाना जाता है। आपको बता दें कि 1632 में गुजरात के एक व्यापारी चंद्र तिवारी ने यहां चंपावत के राजा ज्ञानचंद के साथ शरण ली थी। बताते हैं उनके सपनों में मां पुण्यगिरि दिखाई दी थी, जिसमें उन्होंने एक मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा था। तब से आज तक मंदिर में जोरों शोरों के साथ पूजा पाठ की जाती है और भक्तों का यहां तांता लगा रहता है। चैत्र नवरात्रि के समय यहां मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। हर साल यहां मेला भी आयोजित किया जाता है, जहां भारत के अनगिनत भक्त मेले में शामिल होने आते हैं। इस मंदिर को एक और नाम से जाना जाता है, जिसके बारे में आपको शायद ही पता होगा। मंदिर को झूठे का मंदिर भी कहते हैं। चलिए आपको इस मंदिर की दिलचस्प बात बताते हैं।

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पूर्णागिरी मंदिर से लौटते समय झूठे का मंदिर की भी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि एक व्यापारी ने मां पूर्णागिरी से वादा किया था कि अगर उसकी पुत्र की इच्छा पूरी हुई तो वह एक सोने की वेदी का निर्माण करेगा। उनकी इच्छा देवी ने प्रदान की थी। लालच आते ही व्यापारी पगला गया और उसने सोने की परत चढाने के साथ तांबे की एक वेदी बना डाली। ऐसा भी कहा जाता है कि जब मजदूर मंदिर को ले जा रहे थे तो उन्होंने कुछ देर आराम करने के लिए मंदिर को जमीन पद रख दिया। उन्होंने कितना मंदिर को उठाने की कोशिश की, लेकिन मंदिर उठ न सका। व्यापारी को मां द्वारा की जाने वाली ये वजह समझ आ गई और उसने मांफी मांगने के बाद वेदी के साथ मंदिर बनवा डाला।मल्लिकागिरी, कालिकागिरी और हमला चोटियों से घिरा, पूर्णागिरी मंदिर। भक्त पूर्णागिरी मंदिर के लिए निकलते समय भैरों बाबा के दर्शन करना जरूरी समझते हैं। लोगों का मानना है कि भैरों बाबा की अनुमति से ही भक्त आगे बढ़ते चले आते हैं।
अवलाखान या हनुमान चट्टी इस मंदिर के पास स्थित है, जिसे ‘बंस की चराई’ पार करने के तुरंत बाद आसानी से जाया जा सकता है।

यहां आप टनकपुर शहर और कुछ नेपाली गांवों को भी देख सकते हैं। इस मंदिर के पास ही बुराम देव मंडी स्थित है जो पर्यटकों के बीच भी काफी लोकप्रिय है। पूणागिरि मंदिर पहुंचने के लिए टनकपुर से थुलीगढ़ तक अच्छी सड़क है। इसके बाद वहां से दो किमी पैदल चलकर मंदिर पहुंचा जा सकता है। टनकपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो पूर्णागिरि मंदिर से लगभग 18 किमी दूर है। मंदिर से लगभग 145 किमी दूर पंतनगर हवाई अड्डा है। दिल्ली हवाई अड्डा मंदिर से लगभग 368 किमी दूर है। मंदिर से कुछ ही दूरी तक मोटर मार्ग बना दिया गया है। अब यहां पहुंचने के लिए पैदल यात्रा काफी कम है।
पूर्णागिरि मंदिर के दर्शन करने के पश्चात भक्त भैरव मंदिर की पूजा अर्चना भी करते हैं।

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