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कुमाऊँ कमिश्नर और पुलिस कप्तान को क्रिस्टल कारपोरेशन की भीमताल संपत्ति से अतिक्रमण हटाने के आदेश
नई दिल्ली। उच्च न्यायालय दिल्ली ने क्रिस्टल क्रेडिट कारपोरेशन लि. के निवर्तमान मैनेजमेंट की याचिका पर हाइकोर्ट के शासकीय समापक पर नकेल कसी है, पूछा है कि 22 साल से सुरक्षा मद में भारी भरकम खर्च करने के बाद भी कब्जे कैसे हुए। जिस बड़ी कार्रवाई हुई है।
ज्ञातव्य है कि करीब 8 करोड़ रुपये से ज्यादा शासकीय समापक ने सिर्फ 5 संपतियों, दिल्ली स्थित साकेत की बिल्डिंग, क्रिस्टल कोणार्क होटल श्रीनगर, रानीबाग प्रेस, बेरीनाग फैक्ट्री एवं भीमताल की जमीन पर चौकीदारी खर्च दिखा दिए और जो जो संपत्तियां बिकी वही चौकीदारों में खर्च दिखा दी गई। आम निवेशक को आजतक एक रुपया नहीं मिला। ऐसे में संदेह होने लगा है कि जनता की गाड़ी कमाई से जोड़ी गई संपत्तियां यूं ही खुर्द-बुर्द होती रहेगी।
हाइकोर्ट ने कहा है कि निवर्तमान मैनेजमेंट सन् 2011 से कब्जे पर बार-बार शासकीय समापक को सूचित करता रहा मगर 33 फीसदी जमीनों पर शासकीय समापक के पजेशन के दौरान कब्जे कैसे हुए। निवर्तमान मैनेजमेंट ने इस बात को बार बार कहा है कि संपत्तियां बेचकर आज से 15 साल पहले ही देनदारी पूरी हो जाती मगर शासकीय समापक चौकीदारी के नामपर लगातार खर्च करने में ज्यादा रूचि रखता आया है।
निवर्तमान मैनेजमेंट ने यह भी अदालत के सामने कहा है कि शासकीय समापक के बिना किसी तर्क के संपतियों के दाम गिराए जा रहे हैं, जबकि निवेशकों की देनदारी जो अदालत में आई है उससे कई गुना ज्यादा संपत्ति हैं। इसी तरह सरकार खर्च करती रही तो सारी संपत्तियां खर्च में समाप्त कर दी जाऐगी।
निवर्तमान मैनेजमेंट ने इसी तरह 2011 में दर्ज याचिका का हवाला दिया, जिस पर 2014 में शासकीय समापक ने माना कि कब्जे हुए हैं, और हाइकोर्ट ने प्रशासन को कड़े निर्देश दिए थे, मगर शासकीय समापक की निष्क्रियता से और भी बर्बादी होती रही।
सन् 2011 से शासकीय समापक की अनसुनी के कारण निवर्तमान मैनेजमेंट ने समापक के नियोक्ता, कारपोरेट मिनिस्ट्री में भी शिकायत की है। कब्जे के कारण 43,627 वर्ग मीटर जमीन, जिसका बाजार भाव 40 करोड़ से ज्यादा है, शासकीय समापक 22 करोड़ में नहीं बेच सका है।
उच्च न्यायालय ने गंभीर संज्ञान लेते हुए, कुमाऊँ कमिश्नर एवं पुलिस कप्तान को आदेश दिया है कि तत्काल सन् 2003 की स्थिति में जमीन को खाली कर, शासकीय समापक को सुपुर्द करें। इसके साथ ही न्यायालय ने शासकीय समापक ने 22 साल से ठंडे बस्ते में डाले मामले पर पूरे 22 साल का चौकीदारी खर्च एवं अन्य लेन-देन का ब्यौरा पेश करने के आदेश भी दिए हैं।