उत्तराखण्ड
नियुक्ति रद्द से ज्यादा पत्रकारिता की मजाक
–वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मानसेरा की नियुक्ति रद्द करने पर नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्टस उत्तराखंड ने की कड़ी आलोचना
हल्द्वानी। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मानसेरा का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का सलाहकार नियुक्त होने के चंद घंटों बाद ही जिस तरह सरकार के नुमाइंदों के पेट में दर्द हुआ और उनके खिलाफ मुहिम छेड़ी गयी वह इस बात का प्रमाण है कि सरकार के भीतर कितनी ज्यादा खींचतान है? अगर वे गलत थे तो नियुक्ति क्यों की गई? और की गई तो ज्वाइन करने से पहले ही नियुक्ति निरस्त क्यों की गई?
विदित हो कि मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार के रूप में पत्रकार दिनेश मानसेरा की नियुक्ति के अगले ही दिन उनके द्वारा देहरादून पहुंचकर आहत मन से पद अस्वीकार करने की घोषणा करना और सरकार द्वारा नियुक्ति आदेश निरस्त करने की घटना ने सबको चौंका दिया। लेकिन जिस तरह एक वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड की पत्रकारिता के सम्मान को ठेस पहुंचाई गई है वह क्षमा करने योग्य नहीं है। नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे उत्तराखंड)
एक पत्रकार और पत्रकारिता के साथ किए गए इस तरह के व्यवहार से अत्यंत आहत और दुखी होकर सरकार के इस निर्णय की कड़ी आलोचना करते हैं।
दिनेश मानसेरा केवल एक नाम नहीं बल्कि आज समाजसेवा का भी पर्याय हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री को राज्यहित में उनके दीर्घकालीन अनुभव की जरूरत थी। उत्तराखंड के तमाम पत्रकारों ने भी यह सोचा था कि मुख्यमंत्री ने पत्रकार दिनेश मानसेरा के रूप में पूरे राज्य की पत्रकारिता को सम्मान दिया है लेकिन किसी ने भी सपने में भी नहीं सोचा था की उनके सिपहसालारों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको यह सब पसंद नहीं होगा।
श्री मानसेरा लंबे समय तक पांचजन्य अखबार से जुड़े रहे और वर्तमान में एनडीटीवी में कुमाऊँ मण्डल के प्रभारी हैं। उनके द्वारा पत्रकारिता के साथ-साथ काफी समय से थाल सेवा के माध्यम से जरूरतमंद लोगों को हल्द्वानी में भोजन उपलब्ध कराने का कार्य किया जा रहा है। वे उत्तराखंड के उन सरोकारी पत्रकारों में जाने जाते हैं जो आज ढूंढे नहीं मिलते।
मुख्यमंत्री जी एक पत्रकार के साथ ही नहीं उत्तराखण्ड की पत्रकारिता के साथ ये जो भद्दा मजाक हुआ है उसका जवाब तो आपको देना ही चाहिए ….। एनयूजे उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पाठक ने सरकार के दोहरे निर्णय की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि अगर नियुक्ति निरस्त ही करने का मन था तो उन्हें कुछ समय दिया जाता, यह पत्रकार दिनेश मानसेरा के साथ नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के पत्रकारों के साथ मजाक की गई है।