उत्तराखण्ड
कविता:-प्रकृति आदमी की
प्रकृति आदमी की
प्रकृति आदमी की
प्रकृति गणित की
दोनों एक दूसरे से मिलती-जुलती हैं।
दोनों के बीच का अंतर
साफ दिखता हैं।
एक दाता , ग्राही दोनों है।
और दूसरा ग्राही, ग्राही हैं।
धन-ऋण ,गुणा- भाग लिए गणित।
ऋण-ऋण से धनी
भाग-भाग से भाग्यवान
आदमी
का गणित हैं।।
फिर वो गणित प्रकृति है
गणित की प्रकृति नही।
प्रकृति का गणित हैं।
जहाँ आदमी लेता ही लेता है
भाग ही भाग करता है
भूल जाता है धन करना
गुणा करना तो आता ही नही।
हिसाब तो बराबर होना ही है
फिर वो प्रकृति करती हैं।
ऋण -ऋण से धन लेकर
भाग-भाग से भाग्य लेकर
एक दिन………………..
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल‘
उत्तराखंड