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कुमाऊँ

रणबांकुरों को सलाम..

रणबांकुरों को सलाम
जो लड़े थे देश के लिए
जी – जान लगाकर
उन चरणों को चूम ले
आज घर-घर तिरंगा लहराकर।

सहे थे सैकड़ो जुल्म जिन्होंने
असहनीय दर्द और अकारण यातनाएं,
की कल खुशहाल हो सबका
कुर्वानी आज की देकर ।

हौसलों को डिगा ना सकी
हुकूमत, रत्ती भर भी नही
वो माँ भारती के लाल थे
झुकने न दिया तिरंगा
सर्वस्व बलिदान कर।

कहकर विदा हमें कर गए
संभालना ये जश्न आज़ादी का
ना आने पाये आंच किसी तरह इसमें
लहराये तिरंगा अभिमान कर।

माँ का पूत, बहिन का भाई
पिता का वीर पुत्र,पत्नी का सुहाग
ये धरती छोड़ आये
रहें आज़ादी अमर हमारी
तिरंगा घर – घर लहराये।

हर रंग प्यार मोहब्बत का इसमें
गीत आज़ादी आज सब गुनगुनाये ।
आज़ादी के इस अमृत महोत्सव को
जन-जन तक पहुचाये।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ खेती, राई- आगर
पिथौरागड़, उत्तराखंड

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