उत्तराखण्ड
उत्तराखंड में प्राचीनकाल से ही चली आ रही परंपराएं लुप्त होने के कगार पर : प्रताप नेगी
देहरादून। उत्तराखंड की बुडि दिवालि व इगास त्यौहारदीपावली के बाद 11वे दिन इकादशी के दिन इसे बुडि दिवालि के नाम से प्राचीन काल से ही उत्तराखंड में धूम धाम से मनाने की परंपरा है। उत्तराखंड में अलग अलग जगहो पर अलग – अलग तरीके से ये इगास त्यौहार मनाया जाता है।
आज के दिन कुमाऊं व गढ़वाल में इस इगास व बुडि दिवालि को दीपावली की दीपावली की तरह मनाते हैं।कुमाऊं में आज के दिन बैल व हल व ओखल आदि चीजो की पूजा की भी परंपरा है। आज बैलों को नहाला दुलाहे के उनके सिंगों में सरसों का तेल लगाकर सिर में दो फुन बादते है ये फुन बास के पत्ते की शिलक के बनाये जाते हैं। दिन में बैल को बिधि बिधान से फुन पहनाया जाता है। शाम को ओखल व हल सुफे की पुजा ऐपण व लगाकर दिया जलाकर करते हैं। दूसरी तरफ जो दीपावली के जुआ खेलते हैं व अगर हार गए तो आज बुड दीपावली इगास के दिन रीति रिवाज के साथ फिर जुए में बैठते हैं।
कहावत है इस दिन में पैसे वापस आता करके। प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता ने बताया उत्तराखंड के पारंपरिक त्यौहारों में धीरे धीरे गिरावट आ रही है। जो प्राचीन काल से कुमाऊं व गढ़वाल में बुड दीपावली व इगास की परंपरा थी व धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है।