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उत्तराखण्ड

कानून भी हैं कोरोना की दवा

कोरोना महामारी का दौर अभी बिता नही हैं। लेकिन लोग है की मानने को तैयार नही। पर्यटक स्थलों, धार्मिक जगहों, तीज- तय्यव्हारो,मेलों, बाज़ारो इत्यादि जगहों पर उमड़ी लोगो की भीड़ कोरोना को दावत देती नज़र आ रही है। आखिर लोगों को समझ में कब आयेगा?. अभी चंद रोज़ पहले ही लाखों की संख्या में हमने अपने खोये हैं।

थोड़ी शिथिलता के साथ खोली गयीं शर्ते बेमानी सी लगने लगी। चारों तरफ से एक ही आव्हान हो रहा हैं टीके लगाओ, लेकिन आंकड़े इसमें भी हमें पीछे दिखा रहे हैं। ऐसा नही है कि सैर- सपाटा, घूमना-फिरना बिल्कुल बन्द हैं,बल्कि कोरोना प्रोटोकॉल के साथ ही खुला है. सरकार व प्रशासन को चाहिए ऎसी जगहों पर टीकाकरण उपलब्ध करा दे और प्रवेश बंद करने की जगह नियंत्रित करें। अन्यथा रिक्त स्थान बनने में देर नही लगेगी। कानून की सख़्ती से ही हमने प्रथम लहर को तेजी से फैलने से रोक था। यानी कानून कारगर था। इसीलिए कानून को कोरोना की एक दवा के रूप में भी देना पड़ेगा,इस्तेमाल करना पड़ेगा।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड
(लेखक कोरोना के प्रति लोगो को विभिन्न माध्यमों से जागरूक करते आ रहे हैं)

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