कुमाऊँ
कई खतरों को अंजाम देता ख़स्ताहाल संपर्क मार्ग..सुधलेवा कोई नही ??
शहरों का रास्ता गांवो से होकर जाता हैं। और गांव बदहाल ज़िन्दगी जी रहे है। ना पीने का साफ पानी है और ना ही सड़क से जुड़ने वाले संपर्क मार्ग चलने फिरने के लायक हैं। नौले, धारो की सीमेंट की पुताई ने पानी के स्रोतों को कम कर दिया है। विकास के नाम पर बड़ी बड़ी बातें लगता है सिर्फ कागज़ी में सिमटकर रह गया हैं।
जनपद पिथोरागढ़ के तहसील मुख्यालय के बेरीनाग से मात्र पांच किमी के फासले पर राई-आगर कस्बे को जुड़ने वाले संपर्क मार्ग अपनी ख़स्ताहाल पर रो रहे हैं। ग्राम खेती,काहकोट,धारी, तल्लासेरा,बादोली,मंतोली, गुरैना, कालसिंधार, गुरुसूटी इत्यादि दो दर्ज़न गांवो को जोड़ने वाला संपर्क मार्ग खेती पुल से राई -आगर तक बिल्कुल टूट चुका है। इस रास्ते से छोटे बच्चे,महिलाएँ,वृद्धजन, कॉलेज जाते लड़के ,लड़किया, किसान,छोटे व्यापारी, चरवाहे,शिक्षक,कर्मचारी,मज़दूर,पुरोहित, स्थानीय स्तर पर दैनिक काम कर गुज़र बसर करने वाले अश्वजन और प्रतिदिन राई-आगर जाने वाले सैकड़ो ग्रामीणों को इस ख़स्ताहाल रास्ते से सुबह,शाम जान खतरे में डालकर दो चार होना पड़ता हैं। बीमार होने की स्थिति में सड़क मार्ग न होने के कारण उपचार के लिए लिए बेरीनाग तक पहुचाना एक टेढ़ी खीर बन गया है। गांव वालों ने पहले भी इस मार्ग को ठीक करने को स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित प्रशासन तक गुहार लगाई थी।लेकिन लोकतंत्र के नाम पर इसकी टोपी उसके सिर वाला किस्सा से आज आम ग्रामीण अपने को असहाय महसूस कर रहा हैं।
गौरतलब है अल्मोड़ा -धारचूला राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे इन गांवो में आज़ादी के इतने सालों के बाद भी सुविधाओ की रोशनी मयस्सर नही हो पाई।एक दशक से भी अधिक घोषित सड़क आज तक एक कदम तक नही चल पायी। इस ख़स्ताहाल रास्ते को अविलंब ठीक करने की गुहार ग्रामीणों ने एक बार पुनः की है। गांव के जागरूक व पेशे से शिक्षक पवन कुमार उपाध्याय के नेतृत्व में आज गांव वालों ने बेरीनाग उपजिलाधिकारी एवं खंड विकास अधिकारी को इस आशय ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन देने वालो में संतोष उपाध्याय,सुमन,देवेंद्र, आदि सम्म्लित हुए।
सामाजिक सरोकारों से संबंध रखने वाले व शिक्षक प्रेम प्रकाश उपाध्याय ने बताया सभापति न्याय पंचायत व सदस्य,क्षेत्र पंचायत, ज़िला पंचायत से भी इस विषय मे बात की गई है।जिससे समय रहते संपर्क मार्ग ठीक कर किसी अनहोनी को टाला जा सके।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय, ‘नेचुरल‘
(लेखक सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं)