उत्तराखण्ड
उत्तराखंड का पारंपरिक त्योहार हरेला कब है और क्या है इसका शुभ मुहूर्त, किस तरह बोते है हरेला, जानिए यहां
उत्तराखंड के कुमाऊं में हरेला पर्व मनाया जाता है तो वही गढ़वाल में मोल संक्रात, हिमाचल में हरियाली पर्व के तौर पर मनाया जाता है।यह हरेला पर्व साल में तीन बार होता है चैत्र मास व आश्विन मास के नवरात्रि और सावन में, लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हरेला सावन के महीने का हरेला बताया जाता है।इस बार हरेला का त्यौहार 16जुलाई को मनाया जाएगा। हरेला बोने की विधि हैसबसे पहले मिट्टी को सुखाया जाता है उसे छाना जाता है।
उसके बाद कोई टोकरी या मिट्टी के वर्तन में हरेला बोया जाता है।हरेला सात व नौ अनाजों के मिक्स अनाजों के द्वारा बोया जाता है।गेहूं,जौ,चना,उरुद, सरसों,तिल, मक्का,धान आदि अनाज।हरेला बोते समय सबसे पहले एक परत मिट्टी के साथ उन मिक्स अनाजों की मुट्ठी फिर एक परत मिट्टी फिर एक मुट्ठी मिक्स अनाज यही प्रक्रिया होती है।अगर सात अनाज है तो सात बार मिट्टी की मुट्ठी सात बार अनाज की मुट्ठी।
अगर नौ अनाज है तो नौ मुट्ठी मिट्टी नौ मुट्ठी अनाज।हरेला बोकर इसे मंदिर के सामने रखा जाता है।हर दिन स्नान करके इसे पानी दिया जाता है।नौवें दिन पूजा पाठ के साथ हरेला की गुड़ाई की जाती है। फिर दसवें दिन देवी देवताओं की आराधना के साथ विधि विधान से घर के बड़े बुजुर्गो के द्वारा हरेला काट कर सबसे पहले अपने इष्ट देवी देवताओं को चढ़ाया जाता है। उसके बाद में शुद्ध पकवान बनाकर हरेला बड़े बुजुर्गो के द्वारा छोटे बच्चों को पूजा जाता है।बहिन अपने भाईयों की दीर्घ आयु के लिए हरेला पूजती है।भाई अपनी बहन को हरेला पूजन की भेट देते हैं।
प्राचीन काल से हरेला पूजन के लिए आशीर्वाद के लिए गीत की तौर कुछ वाक्य बने हैं।जियी रया,जागि रया,यौ दिन,यौ मास भियटनें रया,दूप जै पुंगरिया,पाति जै हुंगरिया,ला हरियाव ला बागाव ला सरि पंचमी,एककें एकास है जौ पांचकि पचास।हाथिक जौ बल है जौ सियक जौं तराण।बचि रया,जिरया जागि,रया यौ दिन यौ मास भियटनें रया।
उत्तराखंड देव भूमि में हरेला त्यौहार में पेड़ पौधे लगाने की प्रक्रिया व कई प्रकार के फल दार पेड़ों की क़लम करके लगाने की प्रक्रिया व पेड़ों की टहनियों को लगाने की प्रक्रिया प्राचीन काल से ही चली आ रही है।बताया जाता है हरेला के दिन पेड़ पौधे इसलिए लगाये जाते उस दिन के पेड़ पौधें लगाना शुभ माना जाता है।प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता ने बताया हरेला त्यौहार के उपलक्ष्य में अलग-अलग जगहों में अलग अलग-अलग संस्थाओं के द्वारा पेड़ पौधे लगाये जाते हैं।