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दीवाली पर कुमाऊं में गन्ने से क्यों बनाते हैं लक्ष्मी?, 400 साल पुरानी है परंपरा

हमारे उत्तराखंड में दिपावली पर मां लक्ष्मी गन्ने से बनाई जाती हैं। ये परंपरा 400 साल से भी ज्यादा पुरानी है। आज हम आपको इस आर्टिकल में हमारे उत्तराखंड की एक खास परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं में दिवाली पर बाज़ार से मूर्तियां नहीं आतीं। बल्कि घर के आंगन में, परिवार के लोग मिलकर मां लक्ष्मी को अपने हाथों से बनाते हैं। ये कोई आज की बात नहीं, ये परंपरा 400 साल से भी ज़्यादा पुरानी है।अब आप सोच रहे होंगे की आखिर गन्ने से ही क्यों? चलिए हम आपको बता देते है।

आपको बता दें की मानस खंड के मुताबिक गन्ने को श्री यानी धन और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी को गन्ना काफी पसंद है इसलिए दीपावली पर मां लक्ष्मी की मूर्ती गन्ने से बनाई जाती है। साथ ही आपको बता दें की पहाड़ के लोग सदियों से अपनी प्राकृती की पूजा करते आ रहे हैं। प्रकृति के सम्मान में भी मां लक्ष्मी की ये मूर्ति गन्ने से बनाई जाती है। दीपावली में सुबह से ही मां लक्ष्मी को बनाने की तैयारियां शुरु हो जाती हैं।

सबसे पहले बतनी है मां लक्ष्मी की चौकी
सबसे पहले लक्ष्मी चौकी बनाई जाती हैं। जिसमें मां लक्ष्मी विराजती हैं। उसके बाद गन्ने के तनों को बराबर टुकड़ों में काटकर धागे से बांधा जाता है। साज सिंगार करके मां लक्ष्मी को सजाया जाता है। जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो खुद प्रकृति मां लक्ष्मी का रुप लेकर घर आई हों। हमारे पुराणों में भी गन्ने को शुभ और फलदायक माना गया है। कहते हैं कि गन्ना समृद्धि का प्रतीक है।

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गन्ने से ही क्यों बनाते हैं लक्ष्मी?
माना जाता है गन्ने की मिठास की तरह ही मां लक्ष्मी घर में सुख समृद्धि और मिठास लेकर आती हैं। रात भर इस प्रतिमा की पूजा होती है, घर में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। फिर इस प्रतिमा को बहते हुए पानी में वसर्जित कर दिया जाता है।

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