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कुमाऊँ

हां,मैं भी चाहूं भू-कानून

हां मै भी चाहूं भू कानून, क्योंकि अपने उत्तराखंड को बचाने का मुझमें है जुनून।

सीधे सादे हैं लोग यहां,छल कपट इन्हे आता नहीं।
रूखी सूखी में ये संतुष्ट रहे,ओछापन इन्हे भाता नही।

देख यहां की सुंदरता, मन किसी का भरता नही।
एक बार जो आए यहां,जाने का मन करता नही।

कोई दूर दराज से आकर यहां,लालच देते हैं पैसों का।
कुछ भोले भाले उत्तराखंडी साथ देते हैं वैसों का।

कुछ मजबूरी कुछ लालच में देखो कुछ लोग बहक जाते हैं,अपनी की गई गलती पर फिर बाद में पछताते हैं।

हमारी पुस्तैनी जमीन खरीद हम पर ही इठलाते हैं।कुछ दिनो के बाद यही लोग, हम लोगों पर गुर्राते है।

कुछ गलती हम लोगो की भी है जो परदेश में बस जाते हैं।ओर हमारे पहाड़ में ये लोग हम पर ही हुकम चलाते हैं।

जो अब तक हुआ वो सहन किया अब आगे न होने देंगे।अपने पितरों की भूमि को हम अब न खोने देगें।

बस इसे रोकने के खातिर भू-कानून की मांग रखी हमने,
उत्तराखंड को स्वर्ग बनाए रखने के सच्चे होंगे सपने।

कोमल रावत
चौखुटिया(अलमोड़ा

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