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आध्यात्मिक

10 जून को शनि जयन्ती पर बन रहा है,दुर्लभ व प्रभावकारी विशिष्ट संयोग

अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष अखिलेश चंद्र चमोला का विशेष आलेख

10 जून को गुरुवार के दिन शनि जयन्ती है।ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को शनि देव का अवतरण हुआ था।इस कारण हर वर्ष इस पुनीत सुअवसर पर शनि जयन्ती मनाई जाती है।ज्योतिष शास्त्र मेँ शनि ग्रह को सबसे अनूठा और विशिष्ट ग्रह माना जाता है।यह मन्द गति से चलने वाला प्रधान ग्रह है।इसका ब्यास उनासी हजार मील है।यह सूर्य से 78 करोड 2लाख मील दूर है।यह सूर्य की परिक्रमा 30साल मेँ करता है।बारह राशियोँ को 30 साल मेँ तथा एक राशि को 2वर्ष 6माह मेँ भोगता है। हर वर्ष इस ग्रह की स्थिति साढे तीन महीने वक्रीय बनी रहती है।मकर और कुम्भ राशि का स्वामी माना जाता है।तुला मेँ उच्च स्थिति तथा मेष राशि मेँ नीच का माना जाता है।ज्योतिष शास्त्र मेँ इस ग्रह को सूर्य पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।सबसे ज्यादा शत्रुता भी सूर्य से ही मानी जाती है।शास्त्रोँ मेँ शनि ग्रह का विवरण इस प्रकार से देखने को मिलता है–

  • नमस्ते कोटरक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने
    ।।
    अर्थात् आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैँ।आपकी ओर देखना भी कठिन है।आप घोर रौद्र ,भीषण और विकराल हैँ।आपको नमस्कार है।
    शनि का शाब्दिक अर्थ होता है शनै शनै अर्थात् धीरे धीरे अपने प्रभाव को दिखाने वाला।यह मँगल ग्रह की भाँति तत्काल अपना प्रभाव नहीँ दिखाता।धीरे धीरे दिखाता है।यह धीमी गति अपने आप मेँ बडी भयँकर होती है।अपनी धीमी चाल से कब राजा को रँक, कब रँक को राजा बना दे इस सन्दर्भ मेँ कुछ नही कह सकते।
    आध्यात्मिकता के चरम पराकाष्टा तक ले जाने मेँ भी शनि ग्रह का विशिष्ट योगदान माना जाता है।शनि ग्रह के विषय मेँ अनेक लोककथायेँ भी देखने को मिलती हैँ।कहा जाता है कि एक बार किसी गलती के कारण शनि देव को घर से निष्कासित करके बनवास दे दिया था।इस पर शनि ग्रह ने बडे सँयम से निर्जन बन मेँ कठोर परिश्रम करके उसे स्वर्ग से भी अधिक रमणीय स्थल बना दिया था।इस आधार पर यह कहा जाता है कि शनि कठोर परिश्रम करने वालोँ की हमेँशा मदद करता है।
    शनि ग्रह को अनेक उपनामोँ से भी जाना जाता है।हिन्दी मेँ शनिश्चर अँग्रेजी मेँ सटर्न अरबी मेँ जुहल फारसी मेँ केवा सँस्कृत मेँ कोणस्थ पिँगल कृष्ण तनय आदि नाम निहित है।
    हस्त सामुद्रिक शास्त्र मेँ इस ग्रह का क्षेत्र मध्यमा अँगुली के निम्न सतह की ओर रहता है।हस्त बिज्ञान मेँ इस ग्रह को शनि पर्वत के नाम से जाना जाता है।अपने पिता सूर्यकी गरमी सहन ना करने के कारण इनका सारा शरीर काला पड गया था,फलस्वरुप सारी सुन्दरता कुरुपता मेँ बदल ग्ई।शनि की माता का नाम छाया है।बचपन मेँ शनिदेव कृष्ण की पूजा मेँ लीन रहते थे।युवा होने पर इनका विवाह सुनन्दा से हुआ।एक बार इनकी पत्नी पुत्र की अभिलाषा से इनके पास ग्ई।पति अपने ध्यान मेँ लीन थे। सुनन्दा को लगा की ये मेरी उपेक्षा कर रहे हैँ।सुनन्दा ने गुस्से मेँ आकरके अपने पति शनि देव को श्राप दे दिया,जहाँ भी दृष्टिडालोगे वहाँ विनाश हो जायेगा।समाधि टूटने पर शनि ने अपनी पूजा का बृतान्त अपनी पत्नी को सुनाया।यह सुनकर पत्नी को बहुत दु:ख हुआ।लेकिन दिये गये शाप को मिटाया नही जा सकता।इस कारण ये नीची दृष्टि को लेकरके चलते हैँ।
    शनि जब रोहिणी नक्षत्र को भेदकर आगे बढते हैँ,तब प्रबल विनाशकारी स्थिति की सँम्भावना बन जाती है।
  • इस तरह का योग राजा दशरथ के समय अयोध्या मेँ आया था।इस बिनाश से मुक्ति के लिए राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ठ से उपाय माँगा।गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ को शनि उपासना करने की सलाह दी।राजा दशरथ शनि की उपासना मेँ इस तरह से लीन हो गये कि शनि स्तोत्र की रचना कर डाली। राजा दशरथ की तपस्या से खुश होकर के शनि देव ने उन्हेँ साक्षात दर्शन देते हुये कहा जो भी भक्त तुम्हारे द्वारा लिखे हुये स्तोत्र से मेरी पूजा करेगा ,उसकी सारी बाधायेँ दूर हो जायेगी।उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नही उठाना पडेगा।
    10जून को होने वाली शनि जयन्ती पर दुर्लभ व प्रभाव कारी विशिष्ट सँयोग बन रहा है।100वर्षोँ मेँ इस तरह का योग पहली बार देखने को मिल रहा है।
    इस दिन शनि जयन्ती है। वट सावित्री ब्रत है। अमावस्या भी है। सूर्य ग्रहण भी है।चारोँ सँयोग बडे महत्व पूर्ण हैँ।शनि जयन्ती का प्रादुर्भाव रोहिणी नक्षत्र मेँ हो रहा है।रोहिणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र और चन्द्रमा को माना जाता है।इस नक्षत्र की गणना पवित्र व विशिष्ट नक्षत्रोँ मेँ की जाती है।इससे यह भी बोध होता है कि कोरोना महा मारी की स्थिति10 जून के बाद कम हो जायेगी। लोगो के अन्दर आशा का सन्चार पैदा होगा शनि देव अपनी जयन्ती को वक्री स्थिति मेँ रहेँगेँ।सारे योग परम शुभता को दर्शा रहे हैँ।
    अमावस्या तिथि 9जून को दोपहर 1-57बजे से शुरु होकर 10 जून साँय को 4-21 तक रहेगी।
    सावधानियाँ – इस जयन्ती पर निम्न सावधानियाँ बरते-
    1-लोहे से निर्मित बस्तुओँ को बिल्कुल भी न खरीदेँ।सरसोँ का तेल लकडी का सामान बिल्कुल भी न लेँ।
    2-तुलसी बेलपत्री को बिल्कुल भी न तोडे।
    3-शराब ,धुम्रपान, तम्बाकू आदि किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन न करेँ।
    4-मन मेँ कलुषित बिचार न लायेँ।5-शनि चालीसा का 11बार पाठ करेँ
    6-अपने श्रद्वानुसार 101 बार ऊँ प्राँ प्रीँ प्रौँ स:शनैश्चराय नम: का जाप करेँ। इस प्रकार न्याय के देवता शनि देब सच्चे मन से की ग्ई पूजा से बहुत जल्दी खुश होकर अपने भक्तो के सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करते हैँ।
  • लेखक- अखिलेश चन्द्र चमोला, माँ काली उपासक, स्वर्ण पदक,राज्यपाल पुरस्कार तथा बिभिन्न राष्टीय पुरस्कारो से सम्मानित,हिन्दी अध्यापक-रा.इ.का.सुमाडी श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल।
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