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डिजिटल पेमेंट से बेस प्रबंधन ने हाथ खड़े किए, एसटीएच में लेटलतीफी
बेस अस्पताल और डॉ. सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) में डिजिटल पेमेंट का मामला लंबे समय से लटका है। अब बेस अस्पताल प्रबंधन ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए डिजिटल पेमेंट की प्रक्रिया को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं। वहीं एसटीएच प्रबंधन लंबे समय से सर्वर न आने की बात कहकर डिजिटल पेमेंट व्यवस्था को लटका रहा है। एसटीएच में करीब 1450 और बेस अस्पताल में प्रतिदिन 900 मरीजों की ओपीडी होती है। इसमें कई मरीज ऐसे होते हैं। जिन्हें जांच भी करानी पड़ती है। ऐसे में दोनों अस्पतालों में पर्चा बनवाने से लेकर जांच का बिल भुगतान करने के लिए लंबी लाइनें लगानी पड़ती हैं और बिल हाथ से बनने के कारण मरीजों के तीमारदारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। खासकर गंभीर मरीजों की जांच के लिए भी बिल तुरंत कराना पड़ता हैं, लेकिन काउंटर पर लगने वालों लंबी लाइनों की वजह से परेशानी होती है। कई बार कर्मचारियों से तीमारदारों की बहस भी हो जाती है। पैसे के लेनदेन में भी दिक्कतें होती हैं। इस पेमेंट व्यवस्था को सरल बनाने के लिए दोनों अस्पतालों में डिजिटल भुगतान करने की कवायद शुरू की गई। अस्पतालों ने कवायद भी शुरू की, लेकिन अब बेस अस्पताल प्रबंधन ने मरीजों के भुगतान वापसी की बात कहकर इस व्यवस्था को धरातल पर उतारने से मना कर दिया है। जबकि एसटीएच मार्च से बिल भुगतान के लिए सर्वर आने का दावा कर रहा है। फिलहाल अभी तक दोनों अस्पतालों में ऑनलाइन पेमेंट की व्यवस्था शुरू नहीं हो पाई है। इसका खामियाजा मरीज और तीमारदारों को भुगतना पड़ रहा है।
मोदी के डिजिटल इंडिया की अनदेखी
दोनों ही अस्पतालों में आज भी बिलिंग के लिए मैनुअल तरीके अपनाए जा रहे हैं। जिसके चलते रुपये के लेनदेन में ही काफी समय लग जा रहा है। अस्पताल प्रबंधन चाहे तो डिजिटल पे के विभिन्न माध्यम अपना कर मरीज व तीमारदारों के साथ साथ काउंटर में बैठे कर्मचारियों की परेशानी को भी कम कर सकता है, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।
डॉ. केके पांडे, पीएमएस, बेस अस्पताल, हल्द्वानी ने कहा कि बेस अस्पताल में मरीज पैथोलॉजी जांच, अल्ट्रासाउंट, एक्स-रे के लिए बिल कटाते हैं। कई बार जांच अल्ट्रासाउंट जिन दिन का बिल कटा है उस दिन नहीं हो पाते। ऐसे में मरीज जिनकी संख्या औसतन रोज 5-6 होगी वह अपने पैसे वापस मांगते हैं। डिजिटल पेमेंट होने पर लौटाने में दिक्कत होगी। इसलिए इस प्रक्रिया को लागू नहीं कराना संभव नहीं हो रहा है।
डॉ. अरुण जोशी, प्राचार्य, राजकीय मेडिकल कॉलेज ने बताया कि बिलिंग रजिस्ट्रेशन काउंटर वाले सेक्शन को डिजिटलाइज करने के प्रयास चल रहे हैं। जल्द ही मरीजों को इसका फायदा मिलने लगेगा।