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उत्तराखण्ड

वृक्षारोपण कर शादी की खुशी की दुगुनी

पिथौरागढ़। विश्व पर्यावरण दिवस पर जहां एक ओर लगनों (शुभ मुहर्तों) की व्यस्तता चल रही हैं वही कुछ लोगों के जुनून सबके लिए प्रेरणा का काम करती हैं। ऐसा ही एक वाकया जनपद पिथौरागढ़ का है जहा लोग 5 तारीख को होने वाली शादी में मशगूल थे वही दूसरी ओर अत्यधिक व्यस्तता में भी विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर वृक्षारोपण के प्रति कुछ लोगों का जुनून देखने लायक था।

शादी में हल्द्वानी से अपने परिवार के साथ आए दीपा तिवारी ने सुबह के नास्ते के समय बातों ही बात में पेड़ लगाने के का जिगर किया। शादी की भीड़ में से ही स्वतः ही लोगों का प्रकृति प्रेम व्यस्था बनाने में जुट गया। कोई कुदाल फावड़ा तो कोई संबल गेड़ी लेकर,खाद पानी व पेड़ो को लेकर आस पास ही बंजर भूमि पर वृक्षारोपण करने में लग गए।

खुशी के इस मुबारक मौके पर वृक्षारोपण करने में बच्चे,जवान, महिलाएं व बड़ी संख्या में बाहर से आए मेहमानों, आगंतुकों में इस प्रकार के प्रयासों के प्रति खुशी देखी गयी। अपनी पृथ्वी को बचाने का प्रयास अपनो को ही करना पड़ेगा , इसी सोच के साथ आंवला,गुलाब,मेरी गोल्ड,आम, बटर ट्री इत्यादि पौधों का रोपण किया गया।

वृक्षारोपण के बाद इन पौधों को बचाने व इनका संरक्षण करने की जवाबदेही भी तय की गईं। प्रेम प्रकाश उपाध्याय “नेचुरल” के नेतृत्व में एक सार्वजनिक अपील भी की गई की हर खुशी के मौके पर “मेरी खुशी, मेरा पौधा” के साथ वृक्षारोपण करें. वृक्षारोपण ने प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आए मेहमानों को एक साथ लाकर आज के सोशल मीडिया के अलग थलग होने व रहने के भ्रम को भी तोड़ा हैं।

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इससे ये सभी के लिए सीख है की अगर जमीन पर सक्रिय होकर सामुदायिक रूप से काम किया जाय तो इससे ना सिर्फ प्रकृति बचेगी बल्कि हमारे भीतर की प्रकृति भी सुंदर होगी. कार्यक्रम में पूर्व प्रबंधक एलआईसी रमेश चंद्र तिवारी , मीरा कांडपाल,दीपा पाठक, दकशीष उपाध्याय,पायल जोशी,सचिन तिवारी, दक्ष्य जोशी,दीपा उपाध्याय, हरगोविंद उपाध्याय,जानकी उपाध्याय, चंपा जोशी,कामाख्या,जिज्ञासु ,मनोज कांडपाल, भुवन चंद्र उपाध्याय सहित काफी संख्या में लोगों ने शिरकत की। वृक्षारोपण के उपरांत प्रकृति प्रेमी “नेचुरल” ने स्वरचित गजल गाकर प्रकृति के प्रति अपने प्यार का इजहार भी किया।

गजल मुझे तेरी एक अदद मदद की जरूरत हैं।पिघलते ग्लेशियर अब बड़ा रहे मेरे मिजाज(ताप)फिर भी में शांत ही दिखूंतुझे क्यूं नही इसकी तलब है।।मेरे अशांत होने में तूफान का अंदेशा समझशांत रहूं सकूं में इसकी जरूरत क्यों नहीं हैं।। सबके उदर भरने, जिगर सहनेकी शक्ति सामर्थ्य दोनो मुझमें हैं ।तुझमें लूटपाट की इतनी छटपटाहट क्यों हैं ।

।।कही भी उड़ ले तूपाव जमीन में ही आयेंगे।इस जमीं की अहमियत की समझ फिर तुझमें क्यू नही है।।मत कर आखें बंद मेरे उपभोग मेंमें सदा से तेरे काम आयीफिर तुझे मेरी जरूरत क्यों नही हैं।।मेरे सीने में कब तलक छीने गेंडी से छलनी करेगा। वक्त पर जागने की अब जरूरत क्यों नही है

।।शहरीकरण की आड़ में खूब खेला बजाया हैं मुझे बहुत,प्रकृति कितनी अप्रकृति हो गयी इस गणित का हिसाब क्यू नही है।। हरे भरे पेड़ अविरल जल धारा श्रृंगार मेरा,सजी रहूं दुल्हन की तरह,घर आंगन डाले डेरा तेरासुनेगा विविध गीत संगीत,रचेगा काव्य,महाकाव्यगर में बची रहीतेरे बीच साराइस होनी को समझने की जरूरत पैदा क्यों नही हैं।।

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