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बरेली के चिराग ने 20500 फीट ऊंची कांग यात्से चोटी पर फहराया तिरंगा
बरेली: रामपुर गार्डन के चिराग अग्रवाल ने ग़ज़ब की हिम्मत और दिल्ली दिखाते हुए 20500 फीट ऊंची कांग यात्से चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। 90 किलोमीटर की इस दुर्गम यात्रा में उनके साथ देश और दुनिया के 14 लोग थे, लेकिन सिर्फ चार लोग ही चोटी तक पहुंच पाए। चिराग का सपना एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने का है। 25 वर्ष के चिराग ने अपनी इंटर की पढ़ाई शहर के माधवराव सिधिया पब्लिक स्कूल से की है। केसीएमटी से बीकॉम करने के बाद सर्राफा कारोबार में लग गए।
नामी पर्वतारोही मामा अनिल जैन चिराग के साथ ही अमेरिका में रहते हैं। उनसे प्रेरित होकर चिराग ने भी एक वर्ष पहले पर्वतारोहण के क्षेत्र में जाने का मन बना लिया और पहले से ही प्रैक्टिस भी शुरू कर दी।पहले पर्वतारोहण की शुरुआत उत्तराखंड में 45 किलोमीटर लंबी केदारनाथ चोटी की ट्रैकिंग कर पूरी की।
इस सफलता का स्वाद चखने के बाद चिराग रुके नहीं। 4 महीने पहले लद्दाख की कांग यात्से चोटी फतेह करने की तैयारी भी शुरू कर दी। इस ट्रैकिंग के लिए चिराग ने अपने खान-पान में भी काफी बदलाव किया। जिम करना शुरू किया और कई घंटे तक दौड़ने की प्रैक्टिस भी की। कम ऑक्सीजन में सांसों पर नियंत्रण रखना भी सीखा। बिना मोबाइल-नेट के रहने की आदत विकसित की और फिर 13 अन्य साथियों संग लद्दाख की जोखिमों से भरी यात्रा पर रवाना हुए।
दस पर्वतारोहियों ने बीच सफर ही हारी हिम्मत, लौटे वापस
स्वर्गीय राजीव अग्रवाल और अर्चना अग्रवाल के बेटे चिराग ने 22 जुलाई 2024 को अपना सफर शुरू किया। चार दिन में 45 किलोमीटर की ऊंचाई पूरी करने के बाद वह पहले कैंप पर पहुंचे और एक दिन वहां आराम किया। 26 जुलाई की रात दस बजे उन्होंने अपनी टीम के साथ ऊपर चढ़ाई करनी शुरू कर दी। चोटी की ऊंचाई 7 किलोमीटर और तकरीबन 1100 मीटर की रह गई थी। अब इस खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ पाना बहुत कठिन साबित हो रहा था। एक-एक करके टीम में 10 लोगों ने हार मान ली. किसी को सिर दर्द, तो किसी को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। शेरपा ऐसे लोगों को लेकर वापस लौटने लगे. उसके बाद भी चिराग और उनके तीन दिलेर साथियों ने हार नहीं मानी। चारों लगातार आगे बढ़ते चले गए और फिर सुबह 10:30 बजे शिखर तक पहुंचकर तिरंगा गाड़ ही दिया।
चोटी से 150 मीटर पहले टूटने लगी थी हिम्मत
चिराग बताते हैं कि 14 लोगों में से 10 लोग ने बीच में ही हिम्मत छोड़ दी. लेकिन हम चार लोग किसी तरह से ऊपर तक पहुंच गए। इससे पहले जब शिखर की ऊंचाई 150 किलोमिटर रह गई थी तो हम चारों की हिम्मत भी टूटने लगी थी।
पानी खत्म हो चला था और सुन्न थीं दिमाग की नसें
हम केवल तीन लीटर पानी ही लेकर चले थे। उसमें से भी एक बोतल नीचे गिर गई। पानी खत्म होने की कगार पर था और दिमाग की नसें सुन्न होती जा रही थीं। सांसें गले में ही अटक जा रही थीं। तूफानी हवा से मन विचलित हो रहा था। लगा कि अब ट्रैकिंग पूरी नहीं हो पाएगी। जैसे तैसे करके हमने 10 मीटर की ऊंचाई तय की। तभी शिखर ने फिर से हम लोगों में नई ऊर्जा भर दी और हम अपनी पूरी जान लगाकर शिखर तक पहुंच ही गए।
लद्दाख की कांग यात्से चोटी पर
….और आखिरकार कांग यात्से पीक पर फहरा ही दिया तिरंगा
चिराग बताते हैं कि शिखर फतेह करने के बाद खुशी और उल्लास के चलते हम अपने जज्बातों को काबू में नहीं कर पा रहे थे। फिर भी थोड़ा सा संयम रखा। हमने बैग से फटाफट तिरंगा निकालकर शिखर पर लहरा दिया। चिराग ने बताया कि उनके साथ आयरलैंड के एक युवक ने भी इस दुर्गम यात्रा को पूर्ण किया। हमारी टीम में दो-दो लोग यूएसए और यूके के और तीन युवक यूएई के भी शामिल थे।