उत्तराखण्ड
खुलासा: भूमि रेलवे की, बेच गए अतिक्रमणकारी, पुनर्वास की पैरवी करते रहे जनप्रतिनिधि
–रेलवे भूमि में अतिक्रमणकारियों ने एक दूसरे को बेचकर किया करोड़ों का खेल
हल्द्वानी। यहां रेलवे की भूमि में कई वर्षों से जबरदस्त अतिक्रमण हुआ है। अतिक्रमण का यह मामला नया नहीं है।वोट बैंक के खातिर जिन अतिक्रमणकारियों की पैरवी में जनप्रतिनिधि आगे आये उन्होंने रेलवे की भूमि में जहां तहां अतिक्रमण कर रखा है।यही नहीं रेलवे की जमीन को एक दूसरे को बेचकर करोड़ों का लेनदेन किया हुआ है। रेलवे अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास के लिए कुछ जनप्रतिनिधियों ने न्यायालय में याचिकाएं तक लगाई, आज उन्हीं के द्वारा रेलवे की पटरी से लगी भूमि को मामूली स्टांप पेपर में खरीद-फरोख्त कर करोड़ों का कारोबार किया हुआ है। इस बात का खुलासा तब हुआ जब पूर्व पार्षद हितेश पांडे ने आरटीआई में सूचना मांगी। हितेश का कहना है कि केवल वार्ड नंबर 33 के 65 लोगों द्वारा कुछ ही समय में लगभग ढाई करोड़ का लेनदेन किया हुआ सामने आया। उनका कहना है अगर समूचे अतिक्रमण क्षेत्र की बात करें तो यह मामला करोड़ों में जा सकता है।
पूर्व पार्षद ने बताया रेलवे भूमि में सैकड़ों लोगों द्वारा सुनियोजित ढंग से अवैध कूटरचित निर्माण करके कूटरचित दस्तावेजों की संरचना करते हुए बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से क्रय विक्रय किया हुआ है। अगर पूर्ण साक्ष्यों की जांच की जाए तो यह मामला 100 करोड़ से भी अधिक का हो सकता है। पूर्व पार्षद का कहना है कि दस्तावेजों के आधार पर नजूल नीति का लाभ लेने के उद्देश्य से नगर निगम में नामांतरण, बिजली कनेक्शन, पानी कनेक्शन भी लिया गया है जो कूट रचित दस्तावेज नगर निगम हल्द्वानी में हुए अवैध नामांतरण को आरटीआई के अंतर्गत साक्ष्य के रूप में भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि एक तरफ हाई कोर्ट द्वारा अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए गए हैं वहीं दूसरी तरफ रेलवे अधिकारियों की लापरवाही से अतिक्रमण भाग में सरकारी निधि का दुरुपयोग हो रहा है वहां पर सीवर लाइन, पानी की लाइन, रोड आदि के कार्य भी गतिमान हैं। मामले की शिकायत के लिए पूर्व पार्षद ने रेल मंत्री भारत सरकार नई दिल्ली, मुख्यमंत्री उत्तराखंड तथा पूर्वोत्तर मंडल प्रबंधक रेलवे इज्जतनगर बरेली को भी पत्र भेजा हुआ है। उनका कहना है कि इस तरह के अन्य मामले अलग-अलग क्षेत्रों में भी हो रहे हैं। निकटवर्ती क्षेत्र गौलापार के बागजाला स्थित वन भूमि में भी लगभग इसी तरह की हरकतें हो रही हैं। वहां भी लाखों के लेनदेन मात्र स्टांप पेपरों पर किए जा रहे हैं। शासन प्रशासन खामोश बैठा हुआ है।