उत्तराखण्ड
देहरादून-हरिद्वार की दवा फैक्ट्रियों में तैयार दवाएं फेल, बाजार से वापस मंगवाए जा रहे बैच
उत्तराखंड की फार्मा इंडस्ट्री एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है जब देश की सबसे बड़ी दवा निगरानी संस्था सीडीएसओ ने राज्य में बनी 14 दवाओं को मानकों पर फेल पाया है। मई महीने की जांच रिपोर्ट में इन दवाओं की गुणवत्ता तय मानकों पर खरी नहीं उतरी। देहरादून और हरिद्वार की कई यूनिटों में तैयार ये दवाएं अलग अलग बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं जैसे बुखार डायबिटीज गैस्ट्रिक अल्सर एसिडिटी मानसिक रोग और नसों की कमजोरी।
देशभर में बनी 128 दवाओं को जांच के लिए चुना गया था। उनमें से उत्तराखंड में बनी 14 दवाएं जांच में फेल मिली हैं। सरकार की तरफ से अब सख्ती बरती जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय हर महीने सैंपलिंग करवा रहा है ताकि बाजार में बिक रही दवाओं की सही स्थिति का पता चल सके।
जैसे ही रिपोर्ट आई वैसे ही दवा नियंत्रक विभाग हरकत में आया। राज्य के औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह ने जानकारी दी कि रिपोर्ट मिलते ही जिन कंपनियों की दवाएं फेल हुई हैं उनके लाइसेंस सस्पेंड कर दिए गए हैं।
दवा निरीक्षकों को हिदायत दी गई है कि फेल हुई दवाएं दुकानों में बिकती न पाई जाएं। बाजार में जो बैच पहले से आ चुका है उसे भी वापस मंगाया जा रहा है। कंपनियों को साफ चेतावनी दी गई है कि अगली बार अगर मानकों में कोई चूक पाई गई तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
जांच में जिन कंपनियों की दवाएं फेल हुई हैं उनमें देहरादून के सेलाकुई की हिमालय मेडिटेक और एसवीपी लाइफ साइंसेज के जेंटामाइसिन इंजेक्शन रैनिटिडिन इंजेक्शन शामिल हैं। रानीपुर हरिद्वार की प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर की एल्बेंडाजोल टैबलेट भी फेल मिली है।
बहादराबाद की सुकांटिस बायोटेक की बनाई अमोक्सिसिलिन टैबलेट भगवानपुर रुड़की की बजाज न्यूट्रास्युटिकल्स की एस न्यूरो प्लस रुड़की की हेलेक्स हेल्थकेयर की एसेक्लोफेनाक और पेरासिटामोल टैबलेट भी जांच में फेल पाई गई हैं।
हरिद्वार की मलिक लाइफसाइंसेज की अमोक्सिसिलिन कैप्सूल जैनटिक फार्मा की लेवोसेट्रीज़ीन मोंटेलुकास्ट टैबलेट हेलेक्स की डेपाग्लिफ्लोज़िन टैबलेट सर्व फार्मा की पेरासिटामोल टैबलेट बायोन थेरेप्यूटिक्स का मिटो क्यू सेवन सिरप ईस्ट अफ्रीकन ओवरसीज फार्मा की मल्टीविटामिन टैबलेट और टैलेंट हेल्थकेयर की ओलानज़ापाइन टैबलेट को भी गुणवत्ता जांच में फेल करार दिया गया है।
दवाओं की जांच में जिस तरह की लापरवाही सामने आई है उसने राज्य की औषधि उत्पादन इकाइयों पर भरोसे को झटका दिया है। प्रशासन दावा कर रहा है कि आगे ऐसी किसी भी चूक पर सीधी कार्रवाई होगी लेकिन सवाल ये है कि जो दवाएं अब तक बाजार में पहुंच चुकी हैं उनका असर कितने मरीजों पर पड़ा होगा और इसका जिम्मेदार कौन होगा।

