उत्तराखण्ड
स्टिंग मामले में हरीश रावत की सीबीआई जांच को लेकर सुनवाई आज
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए 2024 के चुनावी समर में उतरने के भी संकेत दिए हैं। हरीश रावत ने साफ किया है कि पीछे हटने और उत्तराखंड की राजनीति से अलग होने का कोई सवाल ही नहीं है। रावत ने कहा कि धीरे-धीरे ही सही मगर वो राजनीति की डगर पर आगे बढ़ते रहेंगे।
हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर अपनी बात शेयर करते हुए कहा है मैं 27 जुलाई को माननीय हाईकोर्ट की चौखट पर माथा टेकूंगा। क्षमता व योग्यता भर हमारे अधिवक्तागण, सीबीआई के दुष्प्रचार का खंडन करेंगे और न्याय प्राप्त करेंगे।
हरीश रावत ने कहा, मैं भाग्य या दुर्भाग्य से एक अजीब स्थिति में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना। मैंने शारीरिक व मानसिक कष्ट के साथ उच्च सत्ता की कई प्रताड़नाएं झेली। न्याय की चौखट पर केंद्र की दमनात्मक शक्ति की पराजय हुई। आज मुझे एक निवर्तमान मुख्यमंत्री के रूप में लगभग छह वर्ष से भी अधिक समय हो चुका है। यदि मेरे विरूद्ध कहीं दूर से भी एक अनियमितता, भ्रष्टाचार या स्व लाभ के लिए उठाया गया कदम मिल जाता तो मेरे दोस्त मेरा इतना चेहरा बिगाड़ देते कि मैं स्वयं को भी नहीं पहचान पाता।
रावत ने सोशल मीडिया पर लिखा, मेरे कुटुंबीजन व रिश्तेदारों को मेरे कार्यकाल में कोई खनन पट्टा, परमिट, ठेका आदि नहीं दिया गया और न किसी को विधानसभा से लेकर कहीं भी नियुक्ति दी गई। उत्तराखंड के जिन चंद नेताओं के परिजनों या स्वजनों ने इस बहती गंगा में हाथ नहीं धोया उनमें मेरा नाम अग्रणी होना चाहिए। नियति की विडंबना है कि मुझे लगातार चुनावी हारों के साथ-साथ अपराधिक आरोपों से मुक्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। शायद भगवान केदारनाथ व उत्तराखंड की सेवा में मुझसे कुछ ऐसी गलतियां हुई होंगी जिसके परिणाम स्वरूप मुझे एकाध ऐसे लोगों के साथ सह अभियुक्त के रूप में न्यायिक पुकार की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है, जिनके साथ नाम जोड़ने की कल्पना भी अत्यधिक दु:खद है।
हरीश रावत ने आगे लिखा, मैं वर्ष 2013 तक दिल्ली और राष्ट्रीय राजनीति में व्यवस्थित रूप से स्थापित था और आज भी ऐसे प्रलोभन की संभावनाएं मेरे मन को डिगाती हैं। दो-एक बार मेरे मन में भाव आया कि चलो अब यहां सब छोड़ो। यह आज का उत्तराखंड 2000 या 2005-07 के कालखंड का उत्तराखंड नहीं है! “आधी रोटी खाएंगे”…… यह नारा एक दु:स्वप्न रूपी भाव बन चुका है। मन के कोने से अपने आप आवाजें उठती हैं कि क्या हार से भाग रहे हो? फिर कदम ठिठक जाते हैं। यूं मैं राजनीति में अपने को धीरे-धीरे समेटने लगा था। अहंकारी सत्ता ने मेरे सामने फिर एक चुनौती डाल दी है। मेरी रगों में दौड़ रहा मेरी मां का दूध मुझसे कह रहा है कि तुझे सौगंध है, संघर्ष करते रास्ते मर जाना, मगर परिस्थितियों से पलायन कर भागने की मत सोचना। उत्तराखंडियत की लाठी टेकते-टेकते हो सकता है एक बार 2024 में ही सही कांग्रेस को विजय पथ पर अग्रसर होते देख लूं। मैंने निर्णय किया है कि मां के दूध के स्वरों को ही सुनूंगा और गीता में भगवान कृष्ण के शाश्वत शब्द ‘दैन्यं न पलायनम्’ का उच्चारण करते संघर्ष की लाठी को टेकते-टेकते आगे बढूंगा।