उत्तराखण्ड
हाईकोर्ट ने दिए ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमावली का अनुपालन करने के निर्देश
नैनीताल। उत्तराखंड में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमावली का खुला उल्लंघन किए जाने और निर्धारित मानकों से अधिक हो रहे ध्वनि प्रदूषण के मामले को नैनीताल हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है और राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि तत्काल प्रभाव से केंद्रीय ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमावली 2000 और राज्य सरकार की ओर से 9 जून 2021 को अलग-अलग ध्वनि क्षमता निर्धारित किए जाने की अधिसूचना का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।
राज्य के सचिव पर्यावरण, नगर नियोजन विभाग, परिवहन विभाग, महानिरीक्षक ट्रैफिक और कुमाऊं आयुक्त और गढ़वाल आयुक्त से मामले पर 3 सप्ताह के भीतर अनुपालन आख्या प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। इस मामले की अगली सुनवाई अगस्त में होगी। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष हुई।
बताते चलें कि अल्मोड़ा निवासी जितेंद्र यादव ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके कहा था कि केंद्रीय नियम और उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर केंद्रीय ध्वनि प्रदूषण नियमावली के अनुपालन से छूट दिए जाने का अवैध नियम लागू कर रखा है, जो विधि के विरुद्ध है। जिम्मेदार अधिकारियों को ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमावली के संबंध में कोई जानकारी नहीं है और न ही नियमावली का अनुपालन कराया जा रहा है। इस कारण प्रदेश में सभी आवासीय इलाकों, अस्पतालों के बाहर भी अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण हो रहा है।
याचिका में कहा गया है कि 2017 में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सभी सार्वजनिक स्थानों में प्रेशर हॉर्न बजाना मना है। इस आदेश की अनदेखी कर बाइक और अन्य वाहन अस्पताल, स्कूल और घरों के पास प्रेशर हॉर्न बजा रहे हैं।
कोर्ट ने सचिव परिवहन और पुलिस महानिरीक्षक ट्रैफिक को बड़े वाहनों और दुपहिया वाहनों पर प्रेशर हॉर्न, मोडिफाइड साइलेंसर और मफलर की बाजार में बिक्री तत्काल रोकने के निर्देश दिए हैं। और वाहनों में इसके प्रयोग पर तत्काल रोक लगाना सुनिश्चित करने को कहा गया है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के जिम्मेदार अधिकारी इस मामले पर कोर्ट के अगले आदेशों की प्रतीक्षा किए बिना खुद से नियमावली का अनुपालन सुनिश्चित करेंगे अन्यथा कोर्ट इसे गंभीरता से लेगी।