उत्तराखण्ड
आशाओं में निराशा ही निराशा, फिर उतर आयी एक दिवसीय हड़ताल कर भेजा ज्ञापन
हल्द्वानी। ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन (AISWF) के आह्वान पर और आशाओं के राष्ट्रीय समन्वय द्वारा समर्थित 24 सितंबर 2021 को आशाओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स की अखिल भारतीय हड़ताल पूरे देश में एक समान वेतन, सुरक्षा उपकरण, जोखिम भत्ता और मृत्यु होने पर मुआवज़ा, कर्मचारी का दर्जा देते हुए नियमितीकरण, न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन आदि बीस सूत्रीय मांगों के संबंध में की गई। हल्द्वानी में एकदिवसीय हड़ताल में उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन से जुड़ी आशाओं ने महिला हॉस्पिटल के सम्मुख धरना प्रदर्शन करते हुए आशाओं के लिए पूरे देश में एक समान वेतन और आशाओं को स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी घोषित करने पर मोदी सरकार की चुप्पी और मासिक मानदेय का शासनादेश जारी करने में धामी सरकार की वादाखिलाफी पर सवाल उठाया।
धरना प्रदर्शन के पश्चात भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को बीस सूत्रीय मांगों का ज्ञापन उपजिलाधिकारी हल्द्वानी कार्यालय के माध्यम से भेजा गया जिसकी प्रतिलिपि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को भी भेजी गई।
इस दौरान ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ कैलाश पाण्डेय ने धरना प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा कि, “हमारा देश आजादी के बाद, सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती का सामना कर रहा है- कोविड -19 महामारी ने हमारे देश की स्वास्थ्य प्रणाली की प्रमुख कमजोरियों को उजागर कर दिया है। स्वास्थ्य संकट और कुपोषण को दूर करने के लिए सरकारों के प्रयास पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आशा जैसे फ्रंटलाईन वर्कर्स पर निर्भर हैं। आशा वर्कर्स सरकार और लोगों के बीच की कड़ी है, पूरे देश में लगभग 10 लाख आशा वर्कर्स छुट्टी के बिना, चौबीसों घंटे ड्यूटी कर रही हैं; उन्हें घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने, कोविड संक्रमण मामलों की रिपोर्ट करने, टेस्ट करवाने, संक्रमितों को चिकित्सा सहायता प्राप्त करने में मदद, रोगियों की निगरानी करने, ठीक होने वाले व्यक्तियों का फॉलोअप आदि करने के लिए कहा जाता है। ये काम एक दिन में लगभग 8-9 घंटे की टीकाकरण ड्यूटी के अलावा हैं। लेकिन आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स को बिना न्यूनतम वेतन, बिना कर्मचारी के दर्जे के बहुत खराब कामकाजी परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है।”
उन्होंने कहा कि, “देश के प्रधानमंत्री ने कई बार अपने भाषणों में उल्लेख किया है कि आशा समेत अन्य सभी योजना वर्कर्स द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं महत्वपूर्ण हैं। लेकिन, संसदीय स्थायी समितियों और 45वें और 46वें भारतीय श्रम सम्मेलनों सहित विभिन्न मंचों की सिफारिशों के बावजूद, आशाओं को श्रमिकों के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है और इन्हें न्यूनतम वेतन का भुगतान तक नहीं किया जाता है।”
यूनियन के राज्य महामंत्री ने कहा कि, “उत्तराखण्ड राज्य में आशाओं के 2 अगस्त से 31 अगस्त तक एक माह के कार्यबहिष्कार हड़ताल और आंदोलन के बाद राज्य के मुख्यमंत्री ने 31 अगस्त को आशाओं के प्रतिनिधिमंडल से 20 दिन में बढ़े हुए मानदेय का शासनादेश जारी करने का वायदा किया था। लेकिन आज 24 सितंबर को 24 दिन बीत जाने के बाद भी भाजपा की उत्तराखण्ड सरकार और उसके मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने वादे पर अमल नहीं किया है। राज्य सरकार इस वादे को शीघ्रता से पूरा कर शासनादेश जारी करे अन्यथा की स्थिति में उत्तराखण्ड की आशाओं के पास पुनः उग्र आंदोलन करने के अलावा कोई अन्य विकल्प शेष नहीं रहेगा।”
यूनियन की नगर अध्यक्ष रिंकी जोशी ने कहा कि, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आशा वर्कर्स की यूनियनों द्वारा निरंतर आंदोलन करने और ज्ञापन देने के बावजूद सरकार आशाओं की दुर्दशा के प्रति पूरी तरह से असंवेदनशील है। राज्य सरकार को तत्काल अपना वादा निभाना चाहिये वरना आशाओं को सरकार को घेरने के लिए देहरादून कूच को बाध्य होना पड़ेगा।”
आशा नेता भगवती बिष्ट ने कहा कि, “हम प्रधानमंत्री जी से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने और आशाओं द्वारा राष्ट्र को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के सर्वोपरि महत्व को देखते हुए आशाओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स के न्यूनतम वेतन और कर्मचारी का दर्जा समेत सभी वाजिब मुद्दों को हल करने की मांग करते हैं।”
24 सितम्बर की एकदिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल के धरना प्रदर्शन में डॉ कैलाश पाण्डेय, रिंकी जोशी, रीना बाला, भगवती बिष्ट, सरोज रावत, दीपा बिष्ट, पुष्पलता, प्रीति रावत, तबस्सुम जहाँ, रेशमा, मुन्नी गजरौला, रेखा आर्य, नीमा, चम्पा मेहरा, यशोदा बोरा, माया टंडन, शहनाज, मीना केसरवानी, शहाना, अनिता देवल, ममता पपनै, चम्पा मंडोला, रेखा पलड़िया, अनुराधा, मोहिनी बृजवासी, बीना जोशी, अनिता सक्सेना, कंचन, लीला पठालनी, ममता आर्य, गंगा आर्य, मीना, रेनू दीप, हंसी उप्रेती, तारा देवी, सुनीता, हेमा रंगवाल, हेमा गैड़ा, माया साह, सावित्री आर्य, गंगा साहू, शांति नेगी, सावित्री अधिकारी, उमा दरमवाल, मंजू, पार्वती बिष्ट, अर्शी, भगवती बेलवाल, तारा थापा, कविता बिष्ट, पुष्पा जोशी, खष्टी जोशी, लता तिवारी, गोविंदी लटवाल, हंसी पडियार, शकुंतला धपोला, कविता भट्ट, गीता पाण्डे, भगवती फर्त्याल, दया पाण्डे, बीना उपाध्याय, रेखा मेहता,नंदी मेवाड़ी, विनीता मटियाली, खीमा बिष्ट, दीपा आर्य, कमला आर्य,रोशनी आर्य, हेमा पाण्डे, जानकी पलड़िया, मंजू देवका, मुन्नी दुर्गापाल, प्रेमा रौतेला, रेखा आर्य, खीमा देवी, मंजू बोरा, रेखा आर्य, दीपा देवी समेत बड़ी संख्या में आशाएँ सम्मिलित रहीं।
एकदिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल की मांगें –
- पूरे देश में आशाओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स को एक समान वेतन की नीति लागू की जाय।
- उत्तराखण्ड सरकार को निर्देशित किया जाय कि आशाओं से मानदेय पर शासनादेश जारी करने का मुख्यमंत्री द्वारा किया गया वायदा तत्काल पूरा किया जाय।
- रिटायरमेंट के समय आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स के लिए अनिवार्य पेंशन योजना लागू की जाय।
- उन सभी योजना कर्मियों को फ्रंटलाइन वर्कर अधिसूचित करें जिन्हें कोविड ड्यूटी में नियुक्त किया गया था। फ्रंटलाइन वर्कर्स को प्राथमिकता देते हुए सभी लोगों के लिए तत्काल मुफ्त और सार्वभौमिक टीकाकरण सुनिश्चित करें। एक निश्चित समय सीमा के भीतर सार्वभौमिक मुफ्त टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए वैक्सीन उत्पादन में तेजी लाएं और वितरण को सरकारी विनियमन के तहत लाएं।
- आशा समेत सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा स्कीम वर्कर्स सहित महामारी-प्रबंधन कार्य में लगे लोगों के लिए सुरक्षात्मक उपकरण आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करें। सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स के बार-बार, निरंतर और फ्री कोविड -19 टेस्ट किए जाएं। कोविड से संक्रमित फ्रंटलाइन वर्कर्स को अस्पताल में भर्ती करने को प्राथमिकता दी जाए।
- स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जीडीपी का 6 प्रतिशत आवंटित करो। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करें ताकि अस्पताल में पर्याप्त बिस्तर, ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सा सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सके ताकि कोविड संक्रमण बढ़ने पर आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके; आवश्यक स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए; सुनिश्चित करें कि गैर-कोविड रोगियों को सरकारी अस्पतालों में प्रभावी उपचार मिले।
- आशा समेत सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स को 50 लाख रुपये का बीमा कवर दो जिसमें ड्यूटी पर होने वाली सभी मौतों को कवर किया जाए, साथ ही मृत्यु होने वाले वर्कर के आश्रितों को पेंशन/ नौकरी दी जाए। पूरे परिवार के लिए कोविड -19 के उपचार का भी कवरेज दिया जाए।
- कोविड -19 ड्यूटी में लगे आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स के लिए प्रति माह 10,000 रू का अतिरिक्त कोविड जोखिम भत्ता भुगतान किया जाए। स्कीम वर्कर्स के वेतन और भत्ते आदि के सभी लंबित बकायों का भुगतान तुरंत किया जाए।
- ड्यूटी पर रहते हुए संक्रमित हुए सभी लोगों के लिए न्यूनतम दस लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
- मजदूर विरोधी लेबर कोड्स को वापस लिया जाए। स्कीम वर्कर्स को ‘वर्कर’ की श्रेणी में लाया जाए। जब तक स्कीम वर्कर्स का नियमितिकरण लंबित है तब तक सुनिश्चित करें कि सभी स्कीम वर्कर्स का ई श्रम पोर्टल में पंजीकरण किया जाए।
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे एनएचएम, आईसीडीएस, मिड डे मील स्कीम के बजट आबंटन में बढ़ोतरी कर इन्हें स्थायी बनाओ। स्कीमों के सभी लाभार्थियों के लिए अच्छी गुणवत्ता के साथ पर्याप्त अतिरिक्त राशन तुरंत प्रदान किया जाए। इन योजनाओं में प्रवासियों को शामिल किए जाए।
- 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों के अनुसार स्कीम वर्कर्स को मजदूर के रूप में मान्यता दो, सभी स्कीम वर्कर्स को 21000 रू प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दो, 10000रू प्रतिमाह पेंशन तथा ईएसआई, पीएफ आदि प्रदान करो।
- मौजूदा बीमा योजनाएं (ए) प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, (बी) प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और (सी) आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बीमा योजना – सभी योजनाओं को आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स को कवर करते हुए सार्वभौमिक कवरेज के साथ ठीक से लागू किया जाए।
- गर्मियों की छुट्टियों सहित वर्तमान में स्कूल बंद होने की स्थिति में मिड डे मील वर्कर्स को न्यूनतम वेतन दिया जाए। केंद्रीयकृत रसोईयां और ठेकाकरण न किया जाए।
- कोरोना अवधि तक सभी को 10 किलो राशन प्रति व्यक्ति प्रति माह दिया जाए। महंगाई पर रोक लगाई जाए। छः महीने तक टैक्स के दायरे से बाहर सभी परिवारों के लिए 7500 रुपये प्रति माह और ज़रूरतमंदों के लिए मुफ्त राशन/भोजन की व्यवस्था की जाए। सभी के लिए नौकरियां और आय सुनिश्चित की जाएं।
- स्वास्थ्य, एनएचएम (अस्पतालों सहित), पोषण (आईसीडीएस और मिड डे मील स्कीम सहित) और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं के निजीकरण के प्रस्तावों को वापस लो। एनडीएचएम और एनईपी 2020 का रद्द करो। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों और सेवाओं के निजीकरण पर रोक लागाओ।
- जनविरोधी कृषि कानूनों को वापस लो जोकि योजनाओं के लिए हानिकारक हैं।
- डिजिटाइजेशन के नाम पर लाभार्थियों को निशाना बनाना बंद करें। ’पोषण ट्रैकर’, ’पोषण वाटिका’ आदि के नाम पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न बंद करें।
- भोजन के अधिकार और शिक्षा के अधिकार की तरह सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अधिकार के लिए कानून बनाया जाए।
- वित्त जुटाने के लिए, ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ जैसी परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए। संसाधनों के लिए अति धनी वर्गों पर कर लगाया जाए। और स्कीम वर्करों के बजट में वृद्धि की जाय।