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इस रावण को मार डालो।
रावण,
हर साल और बड़ा हो रहा हैं,
खाद पानी की खुराक खा पीकर
मोटा तगड़ा हो रहा हैं.
हजारों नही लाखों हजम,डकार कर
सरेशाम भरी बाजार में
खड़ा हो रहा हैं.
वक्त बदल गया है शायद
तभी जो मैंने आज देखा
राम अकेला खड़ा, नही कोई साथ में,
और रावण हजारों, लाखों के साथ खड़ा हैं .
पूरे महफिल थी जिस राम नाम की,
उसी महफिल में रावण
वाहवाही लूट रहा हैं.
लोग अब राम को सिर्फ देखते भर हैं,
सेल्फी तो आज भी रावण के साथ ही खीच रहे हैं .
ऊंचा कद रावण का अब सब को दिख रहा हैं,
जो जीवन भर लड़ा भी बड़े अदब से,
वो राम अब कद छोटा,
नजर नहीं आ रहा हैं.
जय जय कार में भले ही श्री राम हो,
पर भीड़ अकेले रावण जुटा ले रहा हैं.
भीड़ चाल, भेड़ चाल सही,
कर चिल्ला रहे है लोकतंत्र वाले,
और इसी अदा में हर साल एक नयी
सरकार बना रहे हैं।
अंत विजय श्री तक रुकने की फुर्सत नहीं किसी को ,
बस बीच भीड़ से रावण जला कर
अपनी सुविधा की खुशी
पाकर,
मग्न होकर अब लौट रहें है.
प्रेम प्रकाश उपाध्याय “नेचुरल”
उत्तराखंड