उत्तराखण्ड
कुमाँऊ महोत्सव में कुमाऊनी कवि सम्मेलन ने बांधा समा
अल्मोड़ा। कुमाऊं महोत्सव के छठे दिन राजकीय इण्टर कॉलेज के मैदान में हुए कुमाऊंनी कवि सम्मेलन रचनाकारों को श्रोताओं ने खूब सराहा। त्रिभुवन गिरी महाराज की अध्यक्षा में हुए कार्यक्रम की शुरूआत चितई से आए कवि राजेन्द्र रावत ने की। उन्होनें वर्तमान की परिस्थितियों का व्यंग करते हुए कहा “दयाप्तक दरबार में ले रूपेयक खेल चल गो, अलग-अलग दयाप्तक अलग-अलग रेट चल गो…. देव भूमि की स्तुति करते हुए कवि महेन्द्र सिंह ठकुराठी ने शब्दों को इस यों बुना “मां नन्दा के प्रणाम, देव भूमि के प्रणाम….”।
घर छोड़ रोटी रोजगार की तलाश में पलायन करने वालों के दर्द को प्रेमा गड़कोटी ने कुछ यों पिरोया “हम जड़ी से छूटी मनी काँ वे की रोपि काँ गया, हिमालयकडांनों पाखों वे बगि वे को आ गया.” व्यंगकार कवि डॉ दलीप दोरा ने श्रोताओं को गुदगुदाते हुए सुनाया ” मनून जाणें दल-बदल है जाना, मीटिंग बैठुण जाने बहिष्कार है जाना।
कुमाउनी के गजलकार डॉ महेन्द्र सिंह मेहरा ‘मधु’ अर्ज किया – सबुर्के दुनिया में का एकै जे किस्मत है छ, धूप के कम के ज्यादा कैं बिल्कुल नी हैं छ…. कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार नवीन विष्ट ने संध्या गीत सुनाते हुए कहा” उक्काव लागो घाम हुलारी लागी व्याल, मैं दिन दीदी मुखि भै घघारू जसि लाल ज्योति जली में गुरू खण्ड मा जा, पै जगरिया नौमत लगाल…. कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे त्रिभुवन गिरी महाराज से अपने छन प्रस्तुत करते हुए सुनाया तू करिए ऐसा काम जैल भल जे घटा हो है जैतुकुणी छेद चाहे के के दवाटा हो – सरकार है जो बीज्यू प्रशासन है जो कंज, मर ले जाल स्वाट पकूण हूं ईज है बाकि के च’ इस अवसर पर त्रिभुवन गिरी महाराज को सम्मानित किया गया।
कवि सम्मेलन में कुमांउ महोत्सव के अध्यक्ष राजेन्द्र तिवारी, मुख्य संयोजक एड शेखर लखाचौर अमरनाथ नेगी, डॉ. संतोष बिष्ट, रंगकर्मी नारायण थापा, हरीश कनवाल, मनमोहन चौधरी, गीतम भट्ट शर्मा, जयदीप पाण्डे, पंकज भगत आदि मौजूद थे।