उत्तराखण्ड
साहित्य एवं संस्कृति- ‘शेरदा अनपढ़, को श्रद्धांजलि
पहाड़ की धरा सदा ऋणी है उस सास्कृतिक योद्धा की जो अनपढ़ होकर भी पहाड़ का दर्द, पीढ,विवशता और संस्कृति को बखूबी बयाँ कर गया, बचुली मास्टरनी का यह घरेलु शिष्य सारे पहाड़ को कुमाऊनी कविताएँ, साहित्य और संस्कृति की बारहखड़ी सीखा गया, बहुत गरीबी और मुशिकलों में जीवन जिया, बोज्यू (पिता)को बचपन में ही खोया, ईजा(माता) ने जेवर बेचे खेत खेत मजदूरी कर बच्चों को पाला, अल्मोड़े का मालगांव सदा ऋणी, उस अनपढ़ को जो उस गाव को दमका गया, खुद अत्यधिक दुखों को झेलकर इलाके को स्वर्णिम आभावान कर गया, आज भी अल्मोड़ा , लखनऊ, नजीबाबाद एवं रामपुर केन्द्रों में उस शेर की आवाज गरजती महसूस होती,वो खुद चल भी दिये तो क्या पहाड़ को शानदार कुमाऊंनी भाषा का दस्तावेज सनद कर गये, श्रृदांजली (पुण्यतिथि 20 सितम्बर ), स्व. शेर सिह बिष्ट (शेरदा अनपढ़). शेरदा का पूरा परिचय कहती चंद पंक्तियां-
“गुच्ची खेलनै बचपन बीतौ/अल्माड़ गौ माल मे/बुढापा हल्द्वानी कटौ/जवानी नैनीताल मे/आब शरीर पंचर हैगो/चिमड़पड गयी गाल मे/शेरदा सवा सेर ही/ फस गौ बड़ना जाल में।”
प्रस्तुति- जयदेव पाण्डेय