उत्तराखण्ड
भगवान राम व शिव के अनन्य भक्त थे पूव॔ जज उमाशंकर पाण्डेय
–विराट हिमालय को स्वयम्भू शिवालय मान पूजते रहे आजीवन।
-महान न्यायविद के साथ ही सनातन मूल्यों की जीवन्त मूर्ति के रूप में पायी थी प्रसिद्धि।
–कविताओं में झरता है अद्भुत प्रकृति प्रेम व करुणा।
लालकुऑ ( नैनीताल)। पद, प्रसिद्धि व सम्मान की लालसा जन सामान्य की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है और यह सब पाने के लिए वह सतत संघर्षरत भी रहता है। बावजूद इसके समाज के बीच अनेक ऐसे महान लोग भी होते आये हैं । वास्तव में प्रसिद्धि व सम्मान के हकदार होते हुए भी ऐसी किसी भी लालसा से दूर रहकर निष्काम व नि:स्वार्थ भाव से धर्म, संस्कृति, समाज व देश में अपने कर्तव्य पथ पर चलते हुए जीवन सफल कर जाते हैं ।
ऐसे ही प्रभु श्रीराम व भगवान शिव के अनन्य भक्त, महान व्यक्तित्व के धनी थे स्व० श्री उमाशंकर पाण्डेय। स्व० श्री पाण्डेय एक विद्वान जज तो थे ही, परन्तु इसके साथ ही वह सनातन जीवन मूल्यों के जीवन्त चरित्र भी थे ।न्यायाधीश जैसे जिम्मेदार पद का दायित्व निभाते हुए भी धर्म, अध्यात्म, संस्कृति व साहित्य के लिए जीवन का पल-पल समर्पित करने वाली ऐसी महान विभूतियां नि:संदेह किसी प्रतिष्ठा व सम्मान की कभी मोहताज नहीं होती हैं। बेशक! ईमानदार जज रहे स्व० श्री उमा शंकर पाण्डेय को अपने जीवन काल में प्रसिद्धि व सम्मान का कभी कोई मोह नहीं रहा। त्याग, सेवा, श्रद्धा,समर्पण, कर्तव्य परायणता व प्रभु भक्ति ही जिनका जीवन लक्ष्य हो, ऐसी महान विभूतियों के लिए लौकिक व सांसारिक उपलब्धियों का भला क्या मोल हो सकता है ।
उल्लेखनीय है कि स्व० श्री उमा शंकर पांडेय मिर्जापुर,हरदोई, बस्ती, ललितपुर, पौडी गढ़वाल व प्रयाग में जज रहते हुए जहाँ समाज व देश को अपनी श्रेष्ठ सेवाएँ दी, वहीं सनातन संस्कृति के पवित्र ग्रंथ वाल्मीकि रामायण, राम चरित मानस, गीता व अन्य ग्रन्थों के सुन्दरतम् भाष्य लिखकर धर्म प्रेम व कुल मिलाकर अपने सनातन प्रेम को सिद्ध कर दिखाया था।महान न्यायविद रहे पंडित उमा शंकर पांडेय जहाँ अपने जीवन काल में खासकर आजादी के बाद से लेकर जीवन पर्यन्त अपने तार्किक व व्यावहारिक न्याय के लिए जाने जाते रहे वहीं अस्सी के दशक में परम् श्रद्धेय अशोक सिंघल के नेतृत्व में चली श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यात्रा में उनकी निष्ठापूर्ण व सक्रिय सहभागिता के चलते स्व० श्री उमा शंकर पांडेय समूचे उत्तर भारत में विशेषकर राम भक्तों के बीच श्रद्धा के पात्र बने रहे।20 अक्तूबर 1927 को बनारस के सिंहपुर- ज्ञान पुर में जन्मे स्व० श्री उमा शंकर पांडेय के पिता स्व० राम यज्ञ पांडेय काशी नरेश के विधिक सलाहकार रहे। इस तरह श्रीराम, श्री सीता जी, भगवान शिव तथा माता पार्वती को अपना परम् आराध्य मानने वाले स्व० उमा शंकर पांडेय को कानून व सामाजिक न्याय के सूत्र विरासत में ही मिले थे। परन्तु उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की पहचान उनकी निष्ठापूर्ण प्रभु भक्ति, सांस्कृतिक उत्थान के लिए उनके अद्भुत कार्य, धार्मिक ग्रंथों के भाष्य लेखन हिमालय प्रेम व प्रकृति प्रेम में स्वत: परिलक्षित हो जाती है ।
भगवान राम तथा भगवान शिव की भाँति विराट हिमालय को भी पवित्र शिवालय के रूप में अपना परम् अराध्य मानने वाले स्व० श्रीउमा शंकर पांडेय नगाधिराज हिमालय व प्रकृति के प्रति कितनी श्रद्धा व स्नेह रखते थे, यह उनकी कविताओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है ।
ओ हिमालय ! तुम्हें इन मूखे, अधनंगे मानवों की विवशता की शपथ। जरा नीचे तो उतरो और देखो तुम्हारी ही चोटियों पर उगने वाला सूर्य तुम्हारी ही घाटियों को आलोकित नहीं करता यह अंधकार क्या तुमने देखा कैसी विडम्बना, कैसा व्यंग्य चिराग तले अंधेरा।
विद्वान व न्याय प्रिय जज के रूप ख्याति प्राप्त रहे स्व० श्री उमा शंकर पांडेय के अद्भुत कार्यो तथा श्रद्धा पूर्ण लेखन संग्रहों का जिक्र करना आज इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि सरकारी सेवा में और वह भी न्यायाधीश जैसे पद पर रहकर भी उमा शंकर पांडेय ने नौकरी की परवाह किए बिना भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति को न केवल अपनी रचनाओं में अपितु सार्वजनिक रूप से भी सिद्ध कर दिखाया।आज चूंकि श्री अयोध्या पुरी में भगवान के राम लला स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, ऐसे में भगवान के भक्तों का स्मरण करना भी सौभाग्य माना है ।
जय जय श्रीराम ।
आलेख – रमाकान्त पन्त