Connect with us

Uncategorized

उत्तराखंड में यहां मिलीं राजाओं की बनवाई सैकड़ों साल पुरानी चार गुफाएं, देखकर आप भी रह जाएंगे हैरान

श्रीनगर: परमार राजा अजयपाल की धरोहरों को पहचान मिलने जा रही है. 52 गढ़ों में से एक गढ़ देवलगढ़ को कांगड़ा हिमाचल प्रदेश के देवल नाम के राजा ने बसाया था और फिर राजा अजयपाल ने सन 1512 में अपनी राजधानी को चंदपुरगढ़ी से यहां स्थापित किया था.

ऐसे में अब इस ऐतिहासिक क्षेत्र के दिन जल्द बदलने जा रहे हैं. दरअसल उत्तराखंड के इतिहास में राजा अजयपाल के इस गढ़ में 4 प्राचीन सुरंगें और राजा के शासनकाल के कई साक्ष्य पुरातत्व विभाग को मिले हैं. अब पुरातत्व विभाग इस ऐतिहासिक क्षेत्र में मिली प्राचीन सुरंगों के जीर्णोद्धार की योजना बना रहा है.

Devalgarh Caves
राजा अजयपाल का गढ़ था चांदपुरगढ़ी
कहा जाता है कि यहां राजा का न्यायालय था. इस न्यायालय में लिखी गई कई प्राचीन लिपि इस न्यायालय की दीवारों पर देखने को मिलती हैं. ये लिपि ये प्रमाणित करती हैं कि देवलगढ़, चांदपुरगढ़ी के बाद राजा अजयपाल का गढ़ रहा. राजा अजयपाल ने यहां अपनी राजधानी बसाई और गढ़वाल क्षेत्र पर एक छत्र राज भी किया. गौरा देवी और राजराजेश्वरी के उपासक राजा के राजवंश के कई साक्ष्य यहां पुरातत्व विभाग को मिल चुके हैं. इसलिए राजा का ये गढ़ वर्तमान में पुरातत्व विभाग के अधीन संस्कृति की धरोहर के तौर पर है.

राजा अजयपाल ने स्थापित किया था मां राज राजेश्वरी मंदिर
गढ़वाल राजवंश की कुलदेवी कहे जाने वाली मां राज राजेश्वरी मंदिर में श्रीयंत्र को राजा अजयपाल द्वारा ही लाया गया, ऐसा माना जाता है. इसकी पूजा यहां विधि विधान से की जाती है. इसके साथ ही भैरव मंदिर, दक्षिण काली मंदिर के साथ ही अन्य छोटे बड़े मंदिर यहां मौजूद हैं. कत्यूरी शैली में बना गौरा देवी मंदिर और यहां मौजूद कई कत्यूरी शैली की प्राचीन शिलायें और राजा का कत्यूरी शैली में बना न्यायालय इसके प्रमाण रहे हैं. इसके अलावा यहां चार प्राचीन सुरंगें भी मिली हैं. ये सुरंगें कत्यूरी शासन के दौरान की हैं. इनमें कुछ 75 मीटर तो कुछ 150 मीटर लंबी हैं.

यह भी पढ़ें -  हल्द्वानी की फर्नीचर दुकान में लगी आग

Devalgarh Caves
देवलगढ़ में मिली हैं चार सुरंगें
इन प्राचीन सुरंगों पर पुरातत्व विभाग की नजर पड़ने के बाद अब इनके जीर्णाेद्धार में पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग जुट गया है. इसका फायदा ये होगा कि उत्तराखंड के इतिहास के पन्नों में सिमटे इस क्षेत्र को एक नई पहचान भी मिल पायेगी. इतिहासकार राजा के गढ़ को करीब से जानने के लिये इस क्षेत्र का रुख करेंगे जिससे ये धार्मिक स्थल नई पहचान बनाएगा.

कुलदेवी हैं मां राज राजेश्वरी
मंदिर के पुजारी कुंजिका प्रसाद उनियाल ने बताया कि इस क्षेत्र में मौजूद प्राचीन सुरंगों को काफी पहले खोजा जा चुका था, लेकिन अब ये गुफाएं पुरातत्व विभाग की नजर में आईं. इस क्षेत्र में प्राचीन गौरा देवी मंदिर, राजराजेश्वरी की प्राचीन मूर्ति और मंदिर समेत कई ऐसी शिलायें और न्यायालय हैं, जिन्हें सोम का मांडा भी कहा जाता है. ये इस बात का प्रमाण है कि परमार वंश के राजा अजयपाल का राजवंश इस क्षेत्र में काफी समय तक रहा है. राजा ने यहां एक छत्र राज किया. राजा अजयपाल ने राजराजेश्वरी मंदिर को भी यहां स्थापित किया, जो कि ठाकुरों की कुलदेवी कही जाती हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि सुरंग का जीर्णोद्धार इस स्थल को नई पहचान दिलाने में कारगर सिद्ध होगा. उत्तराखंड के इतिहास में मौजूद देवलगढ़ को पहचान मिलेगी तो ये धार्मिक और ऐतिहासिक स्थली अपनी पहचान बना पायेगी.

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad

More in Uncategorized

Trending News