उत्तराखण्ड
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) की पहल पर “नई शिक्षा नीति 2020” पर एक संगोष्ठी आयोजित
रामनगर। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) की पहल पर “नई शिक्षा नीति 2020” पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। नगरपालिका सभागार रामनगर में संपन्न हुई गोष्ठी की शुरुआत सांस्कृतिक टीम उज्यावक दगडी की ज्योति फर्त्याल,प्राची बंगारी,कोमल सत्यवली,हिमानी बंगारी की टीम द्वारा प्रस्तुत गीत, “आ गए यहां जवां कदम” के साथ साथ अनेकानेक अन्य गीतों से हुई। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता आइसा के राष्ट्रीय महासचिव प्रसेनजीत रहे।अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि,”नई शिक्षा नीति हमारे देश में शिक्षा मुनाफे की वस्तु बना देने पर आमादा है इसीलिए अनुदान आधारित शिक्षा को खत्म करके लोन आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने का काम केंद्र की नई शिक्षा नीति का मुख्य एजेंडा है। इसी के तहत यूजीसी को खत्म किया जा रहा है और उसकी जगह एचईएफए को लाया जा रहा है। इसी लोन आधारित शिक्षा व्यवस्था को लागू करने के कारण पूरे देश के विश्वविद्यालयों में बेतहाशा फीस वृद्धि हो रही है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में स्लेबस का 40 से 70 प्रतिशत ऑनलाइन कक्षाओं के रूप में संचालित किए जाने का प्रावधान गरीब बच्चों को शिक्षा से बाहर करने का रास्ता खोलेगा।साथ ही नीति सामाजिक न्याय की अवधारणा को भी पूरी तरह नकारते हुए वंचित वर्गों को आरक्षण और छात्रवृत्ति दिए जाने का कोई जिक्र तक नहीं किया गया है। इस तरह से यह नई शिक्षा नीति सामाजिक न्याय की संवैधानिक बाध्यता का सीधा उल्लंघन करती है। आइसा के राष्ट्रीय महासचिव ने आगे कहा कि, “बड़े पैमाने पर निजीकरण को बढ़ावा देते हुए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 चतुराई से संसाधनों की कमी को सिद्ध करना चाहती है। संसाधनों की कमी के झूठ को 1835 के मैकाले के दास्तावेज़से ही प्रचारित किया जाता रहा है। यह इसलिए किया जाता रहा है कि उच्च वर्ग का आधिपत्य ज्ञान, रोजगार और समाज पर बरकरार रहे।शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास के सामाजिक क्षेत्रमें पर्याप्त संसाधन की गैर-मौजूदगी संसाधनों की कमी की वजह से नहीं है। यह तो राजनीतिकप्रतिबद्धता की कमी की वजह से है। जिसके लिए स्वयं केंद्र सरकार जिम्मेदार है जो शिक्षा के केंद्रीय बजट में लगातार कटौती कर रही है। ट्रेड यूनियन ऐक्टू नेता डा कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, “मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के मायने हैं शिक्षा का निजीकरण- कॉरपोरेटीकरण; शिक्षा का सांप्रदायिकीकरण; इतिहास का मिथकीकरण; सरकार का शिक्षा की ज़िम्मेदारी से पूरी तरह हाथ खींच लेना और शिक्षा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सचेत दूरी बनाना है।इसका सीधा अर्थ है कि महंगी और अवैज्ञानिक शिक्षा और शिक्षा पर बड़े पूंजीपति वर्ग का बढ़ता कंट्रोल। इसके कारण देश के वंचित वर्गों के बड़े पैमाने पर शिक्षा से बेदखल होने की संभावना बढ़ गई है। इसलिए इस शिक्षा नीति को रद्द किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि, “शिक्षा और रोजगार राज्य की ज़िम्मेदारी नहीं है यह घोषणा करते हुए सरकार को अलग करने की शुरुआत ने शिक्षा को कॉरपोरेट जगत के हवाले करने और रोजगार को और रोजगार के अवसरों खत्म करने तक पहुंचा दिया है। इसकी शुरुआत तो नई आर्थिक नीतियों के रूप में 90 के दशक से हो गई थी लेकिन बीजेपी ने इसमें शिक्षा का सांप्रदायिकीकरण और इतिहास का मिथकीकरण जोड़ कर वैज्ञानिक शिक्षा को सदा के लिए बाय बाय कर दिया है।संगोष्ठी में वरिष्ठ शिक्षाविद प्रो अनिल सदगोपाल द्वारा भेजे गए लिखित वक्तव्य का भी वाचन किया गया।प्रो सदगोपाल के अनुसार नई शिक्षा नीति भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से को शिक्षा से वंचित कर गुलामगिरी की ओर धकेलने का कारपोरेट घराने का एजेंडा है जिसे कार्पोरेटपरस्त मोदी सरकार ने लागू किया है। इस नीति ने संविधान की संघीय संरचना को सिरे से खारिज करते हुए संविधान की मूल प्रस्तावना की ही अवहेलना की है।