उत्तराखण्ड
सरकार को कई मुद्दों पर घेरने के तैयारी में विपक्षी दल
उत्तराखंड में साल 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, चुनाव होने में अब कुुछ माह का वक्त बाकी रह गया हैं। ऐसे में चुनाव से पहले राज्य में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। उत्तराखंड में चुनाव नजदीक आने के साथ ही बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आई है। दरअसल कांग्रेस समेत आम आदमी पार्टी भी बेरोजगारी को जनता के सामने सरकार की विफलताओं के रूप में गिना रही है। ऐसे में प्रदेश के युवाओं की सरकारी नौकरी की सोच के चलते राज्य में भाजपा सरकार का चुनाव के दौरान घिरना तय माना जा रहा है।
उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के चलते बेरोजगारी की समस्या पहले से भी ज्यादा बढ़ी है। कई लोगों के रोजगार छूटे हैं और पहले से ही बेरोजगार युवाओं का भी सब्र टूट रहा है। इसी बात का फायदा विपक्षी राजनीतिक दल भी उठाने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य सरकार करीब 22,000 सरकारी नौकरियां का रास्ता खोलने की कोशिश कर रही है और स्वरोजगार के लिए भी सरकार युवाओं के लिए योजनाएं शुरू कर रही है, लेकिन इस सब के बावजूद उत्तराखंड में रोजगार के इस मुद्दे पर भाजपा का घिरना तय लग रहा है। प्रदेश में सरकारी नौकरी को लेकर युवाओं का रुझान रोजगार की दिशा में युवाओं के आड़े आ सकता है यह तय है कि प्रदेश में प्रत्येक युवा को सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती, लेकिन सरकारी नौकरी के लिए युवाओं की अंधी दौड़ के चलते चुनाव में भाजपा को युवाओं के प्रति जवाब देना मुश्किल दिख रहा है।
भाजपा नेता सरकार के प्रयासों की कहानी बता रहे हैं और चुनाव में युवाओं को रिझाने की भी बात कह रहे हैं। इस मामले को लेकर विपक्षी दल बेहद आक्रमक रुख से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। राज्य में बेरोजगारी के लिए सरकार को जिम्मेदार भी मान रहे हैं. उत्तराखण्ड विधानसभा का पांच दिवसीय मानसून सत्र मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए धमाकेदार रहा। शुरुआत से अन्त तक मुख्यमंत्री ने जमकर बैटिंग की। पांच दिन के सत्र में कई बार ऐसे मौके भी आए कि विपक्ष के विधायकों ने सीएम धामी की दिल खोलकर सराहना की। विधानसभा का पांच दिवसीय सत्र मुख्यमंत्री धामी का बतौर मुख्यमंत्री पहला सत्र था।18 मार्च 2022 से पहले राज्य में नई सरकार का गठन होना है, लिहाजा यह मौजूदा सरकार का अंतिम सत्र भी माना जा रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री धामी पर सत्र के दौरान अपनी परफॉर्मेंस को लेकर काफी दवाब था, लेकिन उन्होंने दृढ़ इच्छाशक्ति और कार्य संस्कृति के बूते इस चुनौती को अवसर में बदल दिया।
सदन के बाहर और भीतर विपक्ष की बातों को भी उन्होंने पूरा सम्मान दिया। अपने मांगों को मानने के लिए पोस्टर और नारे का सहारा लेने वाले विपक्ष के विधायकों को दुलारते हुए उनकी मांगों के निस्तारण का गंभीर प्रयास किया.अधिकारियों को बुलाकर उनकी मांगों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने के निर्देश भी दिए।संभवतया उत्तराखण्ड में किसी मुख्यमंत्री ने इस तरह की पहल पहली बार की है। भले ही धामी पहली बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लेकिन सत्र के दौरान उनमें कहीं भी आत्मविश्वास और अनुभव की कमी नज़र नहीं आई।