उत्तराखण्ड
कविता-जय श्री कृष्णा
हे माधव मुरली – मनोहर
धर्म स्थापित कर धरा में
सीखा प्रेम का ज्ञान दिए
भांवर में फसती नैया को
—– केशव
पार तुम लगा गए।
प्रेम भक्ति से सरोबार गर कोई
विराट रूप तुम उसे दिखा गए
क्या प्रधान हो इस मृत्यलोक में
कर्मण्येवाधिकारस्ते पढ़ा गए
सारथी बन सच,वर्तमान का
भविष्य युगों का दिखा गए
निति- अनीति का भाव – भावान्तर
मन इच्छा विचार रूपान्तर
समभाव निश्चल प्रेम आह्लादित
रहकर पृथ्वी में कर्मवीर बनकर
हे मधुसूदन —–
तुम पथ बना गये,
हे वृज मोहन मुरली बजाकर
संगीत जीवन का सुना गये।
भटके को राह, निर्बल को बल
निरूउद्देश्य जीवन
को अधर्म बताकर
सोउद्देश्य जीवन में
पंख लगाकर
शून्य से शिखर तक पहुचने का मार्ग
ऐसी कर्मभूमि तुम प्रशस्ति कर गए।
शत- शत नमन हे योगेश्वर
स्मरण प्रतिदिन तुम्हें द्वारिकेश्वर
प्रार्थना बस इतनी सी मेरी
प्राणी मात्र का हो कल्याण – हे ईश्वर
प्रेम, वात्सल्य,स्नेह, करुणा का
मन-मंदिर घर बने ऋषिकेश्वर।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
उत्तराखंड