Connect with us
Breaking news at Parvat Prerna

राष्ट्रीय

ग़ज़ल

कई लोगों ने हमें पोर्टल पर ‘गजल’ की ख्वाहिश की , ये लीजिए आप सबके लिए बनारसी जी की खास ग़ज़ल

देखते हैं उसकी अदालत का फैसला

बिखरी हुई जिंदगी की करतनें समेट रहा हूँ
हिसाब का वक्त है बहीखाते लिख रहा हूँ
कभी आंधी कभी तूफान , उमड़े जिंदगी भर
सुकून के पलों को उंगलियों पर गिन रहा हूँ
जिंदगी पूरी दूसरों की परवरिश में गवां ली
हैरान हूं खुद के लिए कैसा जालिम रहा हूँ

हजारों मिसरे, न मतला मिला न मक़्ता मिला
हर्फों को बटोर कर कागज पे सिल रहा हूँ
गिनता हूँ अपने जख्म, दिल से दिमाग तक
मैं खुद अपने ख्वाहिशों का कातिल रहा हूं
क्या पाया क्या खाया न जाने कहाँ बिखरा
उम्दा फिजाओं से खयाली धूल बटोर रहा हूँ
जो होगा मंजूरे खुदा होगा, इतर क्या होगा
बेफिक्र बेखुद बिंदास, उसी पे छोड़ रहा हूँ
देखते हैं उसकी अदालत का आखिरी फैसला
जिसके दर कभी वकील कभी मुवक्किल रहा हूँ
बीत रहा है सावन बारिशें थमने ही वाली हैं
भीगी-भीगी एक शाम तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ
आइने को साफ कर खुद को इत्मिनान से देखा
जख्म सीने के बेहिसाब, चेहरे पर गिन रहा हूँ।

-डमरू दत्त ‘बनारसी’

Continue Reading
You may also like...

More in राष्ट्रीय

Trending News