उत्तराखण्ड
क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्थान, थापला, रानीखेत में स्वर्ण जयन्ती समारोह व एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन।
रिपोर्ट – बलवन्त सिंह रावत
स्थान – रानीखेत
केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आयुष मंत्रालय, भारत सरकार) थापला, गनियाद्योली (रानीखेत), जिला अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) ने "आयुर्वेदिक औषधि विज्ञान में कस्तूरी का महत्व एवं चुनौतियां" विषय पर राष्ट्रीय स्तरीय सेमिनार का आयोजन किया। जिसमे केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् के महानिदेशक प्रोफेसर वैद्य रबिनारायण आचार्य मुख्य अतिथि रहे। मुख्य अतिथि द्वारा दीप प्रज्वलित कर सेमिनार का शुभारंभ किया।
आपको बता दे कि स्वास्थ्य और परिवार मंत्रालय (आईएसएम), जो अब आयुष मंत्रालय है, ने वर्ष 1971-72 में उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के महरूरी गांव में क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान, रानीखेत के तहत कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया। उद्देश्य यह रहा कि इस जानवर को कैद में प्रजनन करना और कस्तूरी इकट्ठा करने के लिए गैर-आक्रामक तकनीक का पता लगाना था, ताकि दवाओं की तैयारी के लिए उचित समय में कस्तूरी की स्थायी आपूर्ति प्राप्त की जा सके। इसी क्रम मे संस्थान के पचास वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर संस्थान द्वारा स्वर्ण जयन्ती कार्यक्रम व एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया। इसी क्रम 24 जून को संस्थान के अधीनस्थ उपकेन्द्र कस्तूरी मृग अनुसंधान केन्द्र, महरूरी, बागेश्वर में आयोजित स्वर्ण जयन्ती कार्यक्रम मनाया गया।
वही आज क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्थान, केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आयुष मंत्रालय, भारत सरकार) थापला, गनियाद्योली (रानीखेत), जिला अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) मे राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया। जिसमे संस्थान प्रभारी डॉक्टर अचिंत्य मित्रा ने आयुर्वेदिक औषधि विज्ञान में कस्तूरी का महत्व बताया उन्होंने कहा कि कस्तूरी का उपयोग प्राचीन काल से ही भारत में आयुर्वेद और अन्य देशी चिकित्सा पद्धतियों में औषधि के रूप में किया जाता रहा है। कस्तूरी नर कस्तूरी मृग (मोस्कस मोस्चिफेरस एल.) की थैली (कस्तूरी फली) से निकाली जाती है जिसे कुछ जीवनरक्षक दवाओं में महत्वपूर्ण चिकित्सीय अवयवों में से एक माना जाता है। यह कार्डियो टॉनिक और कामोत्तेजक गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके अलावा कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राज्य पशु है। सेमिनार में विभिन्न वक्ताओं ने कस्तूरी से सम्बंधित अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। वही प्रख्यात वक्ताओं द्वारा अन्य विषय से संबंधित विभिन्न व्याख्यान दिए जाएंगे। इस सेमिनार में पूरे भारत से प्रतिभागियों ने प्रतिभा किया।
प्रोफेसर वैद्य रबिनारायण आचार्य, महानिदेशक, केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद् ने कहा कि कस्तूरी मृग के लिए बना रिसर्च सेंटर 50 साल पुराना है। 50 साल पूरे होने पर हमनें क्या किया और आगे क्या कर सकते है, इस पर चर्चा हुई। रानीखेत का रिसर्च सेंटर विश्व का मान्यता प्राप्त रिसर्च सेंटर है। हमारा हर्बेरियम भी विश्व सूची में अंकित है। हमारा हॉस्पिटल एनएबीएच अधिकृत है। यहां हॉस्पिटल में वर्ष 2015 से ओपीडी की सुविधा भी उपलब्ध है, और बाकी सुविधाएं भी उच्च स्तर की दी जाती है।
इस सेमिनार में प्रोफेसर सुनील नौटियाल, निदेशक, जीबी पंत विश्वविद्यालय, अल्मोडा, डॉक्टर ललित मोहन तिवारी, निदेशक कुमाऊं विश्वविद्यालय, प्रोफेसर हीरा राम, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान से आए सहायक प्रवक्ता, चिकित्सक, पीजी – पीएचडी रिसर्च स्कॉलर सहित क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्थान, थापला, रानीखेत से डॉक्टर गजेंद्र राव, अनुसंधान अधिकारी (वन), डॉक्टर दीपशिखा आर्य अनुसंधान अधिकारी (वन) और डॉक्टर ऐश्वर्या के अनुसंधान अधिकारी (आयु) सहित संस्थान के सभी कर्मचारीगण उपस्थित रहे ।
मंच का संचालन डॉक्टर तरूण कुमार, अनुसंधान अधिकारी (आयु.) द्वारा किया गया।
बाइट– प्रोफेसर वैद्य रबिनारायण आचार्य
महानिदेशक
केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद्