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कोवैक्सीन पर शोध अधूरा, IMS BHU की जांच में खुलासा, प्रारंभिक रिपोर्ट में कही गई चौंकाने वाली बात
, वाराणसी : इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आईएमएस) बीएचयू के प्रोफेसर और जीरियाट्रिक विभाग के अध्यक्ष प्रो. एसएस चक्रवर्ती का को-वैक्सीन पर शोध विवादों में घिर गया है। बीएचयू की चार सदस्यीय जांच कमेटी ने ही शोध को आधा अधूरा बताया है। कमेटी ने कहा कि शोध में पर्याप्त तथ्यों का ध्यान नहीं रखा गया है। इसकी रिपोर्ट जल्द ही आईएमएस के निदेशक को सौंपी जाएगी।
विभागाध्यक्ष ने को-वैक्सीन पर शोध और उसके दुष्प्रभाव का पेपर प्रकाशित किया। दस से ज्यादा विभागों को शामिल करके कहा कि को-वैक्सीन लगवाने वाले किशोरों के बाल झड़ रहे हैं। त्वचा रोग का मामला भी सामने आया है। इस शोध के सामने आते ही हलचल बढ़ गई। आईएमएस बीएचयू प्रशासन ने इस तरह के आधिकारिक शोध से इन्कार कर दिया। साथ ही निदेशक प्रो एसएन संखवार ने डीन रिसर्च प्रो गोपालनाथ की अगुवाई में चार सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दी।
को-वैक्सीन के दुष्प्रभाव वाले शोध में जीरियाट्रिक मेडिसिन, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग और आईएमएस बीएचयू के करीब दस विभागों का जिक्र है। शोध कार्य पूरा होने के बाद उसके रिसर्च जर्नल्स को प्रकाशन के लिए 30 मई 2022 को संबंधित संस्था में रिसीव हुआ।
17 जुलाई 2022 को उसको स्वीकार किया गया, जबकि 20 जुलाई को प्रकाशन हुआ। शुक्रवार को जैसे ही शोध रिपोर्ट में को-वैक्सीन के दुष्प्रभाव वाली जानकारी आईएमएस बीएचयू निदेशक तो हुई तो उन्होंने इसकी सत्यता की जांच करवाने का निर्णय लिया।
शोध रिपोर्ट के समय पर सवाल
लोकसभा चुनाव के बीच को-वैक्सीन की शोध रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने पर सवाल उठाए हैं। आईएमएस बीएचयू के चिकित्सकों का कहना है कि शोध पुराना है, फिर चुनाव के बीच मीडिया को क्यों दिया गया, यह जांच का विषय है। आधी-अधूरी रिपोर्ट के सार्वजनिक किए जाने की पीछे की मंशा ठीक नहीं लग रही। जब शोध की रिपोर्ट जुलाई 2022 में प्रकाशित हुई तो इस समय दुष्प्रभाव वाली बात कहां से सामने आई। इससे आईएमएस बीएचयू की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का अनुमान है।
बोले अधिकारी
जो शोध को-वैक्सीन पर किया गया है, उसपर सवाल खड़ा होने के बाद जांच कराई गई है। फिलहाल रिपोर्ट में कुछ कमियों की जानकारी मिली है। रिपोर्ट मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। आईएमएस के सभी विभागों को पूरे तथ्यों के साथ ही शोध करने का सुझाव दिया जाएगा। इससे संस्थान की छवि बनी रहेगी।