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रिटायर्ड कर्नल और IPS बन रहे ग्राम प्रधान, उत्तराखंड के गांवों में बह रही हैं बदलाव की नई हवाएं

पौड़ी न्यूज़– जहां देश के कई राज्यों में पंचायत चुनाव वंशवाद, जातिवाद और सियासी जोड़-तोड़ से प्रभावित नजर आते हैं, वहीं उत्तराखंड के पहाड़ी गांव एक नई लोकतांत्रिक जागरूकता का उदाहरण बनकर उभर रहे हैं। यहां अब सत्ता नहीं, सेवा प्रेरणा बन रही है। सेना, पुलिस और प्रशासन के रिटायर्ड अधिकारी अब गांवों की बागडोर थामकर लोकतंत्र का असली चेहरा दिखा रहे हैं।
✅ देश सेवा से ग्राम सेवा तक: कर्नल यशपाल सिंह नेगी की कहानी बनी प्रेरणा
पौड़ी जिले की बिरगण पंचायत में इस बार राजनीति नहीं, एक सेवा संकल्प चर्चा में है। सेना से रिटायर कर्नल यशपाल सिंह नेगी को ग्रामीणों ने निर्विरोध ग्राम प्रधान बनाने का फैसला किया है। 2020 में सेना से सेवानिवृत्त होकर कर्नल नेगी ने गांव में रहकर खेती शुरू की और ‘रिवर्स पलायन’ का उदाहरण पेश किया।
उनकी प्राथमिकताएं हैं:
महिला सशक्तिकरण
युवाओं को नशे से दूर रखना
हर हाथ को काम देना
नेगी जी का उद्देश्य सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि गांव को आत्मनिर्भर और प्रेरणादायक बनाना है।
✅ पूर्व आईपीएस विमला गुंज्याल: सीमांत गांव से नेतृत्व की नई परिभाषा
उत्तराखंड पुलिस की पूर्व आईजी विमला गुंज्याल अब अपने सीमांत गांव गुंजी (पिथौरागढ़) की सेवा को समर्पित हैं। देश-सेवा के बाद अब ग्राम-सेवा उनका नया मिशन है। विमला जी ने चुनावी मैदान में उतरकर एक सशक्त संदेश दिया—
“पद बड़ा या छोटा नहीं होता, सेवा का भाव बड़ा होता है।”
अगर गांव में सहमति बनी, तो वह राज्य की पहली महिला आईपीएस ग्राम प्रधान बनेंगी। उनका कदम महिलाओं, युवाओं और सेवा निवृत्त अधिकारियों को नई राह दिखा रहा है।
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✅ जातिवाद को करारा जवाब: टिहरी का सजवाण गांव बना उदाहरण
जहां आज भी चुनावों में जाति एक प्रमुख फैक्टर मानी जाती है, वहीं टिहरी का सजवाण गांव इस सोच को बदल रहा है। 65% ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र में तीसरी बार एससी समुदाय के सेवानिवृत्त तहसीलदार गंभीर सिंह को ग्राम प्रधान चुना गया।
ग्रामीणों का सीधा संदेश:
“हम जाति नहीं, योग्यता को चुनते हैं।”
यह बदलाव सिर्फ एक गांव का नहीं, बल्कि पूरे समाज को नई दिशा और नई सोच देने वाला है।
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✅ उत्तराखंड से उठ रही है लोकतंत्र की असली बहार
सेना, पुलिस, प्रशासन से रिटायर अफसरों का पंचायतों में आना कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सामाजिक पुनर्जागरण है। उत्तराखंड के गांव बता रहे हैं कि अब नेतृत्व सिर्फ कुर्सी से नहीं, विचार और सेवा से तय होता है।
यह राजनीति नहीं, परिवर्तन है। जातिवाद नहीं, योग्यता का सम्मान है।
उत्तराखंड बदल रहा है… गांवों से उठ रही है एक नई रोशनी।
कभी वर्दी में देश की रक्षा की, अब सेवा से गांवों का नवनिर्माण – यही है नए उत्तराखंड की पहचान।



