कुमाऊँ
शिक्षक दिवस पर ‘गुरू,
गुरु की शिक्षा महान हैं
महिमा गुरु की अपार
संग जो गुरु चले
लगती नैया उसकी पार।
भाँवर में ना फ़सने दे
कठिनाइयों से जो लड़ने दे
सम -विषम स्थिति -परिस्थिति में
हार ना वो मानने दे।
गिरकर उठना, उठकर चलना
चलकर दौड़ लगाने दे
भले – बुरे के भेद का अंतर
कम -ज्यादा का भाव भावान्तर
तेरे – मेरे के बीच का अंतर
ऐसा मापन ना वो करने दे।
हे गुरु, तू गोविंद,सदा बन्दनामृत
चरणों में अपने
मुझे शीष झुकाने दे
जीवन सफल बना के मेरा
हे गुरु कर सके स्मरण
विस्मृत कभी ना होने दे।
निष्चल कर्मयोगी बने रहे सदा
जीवन ऐसा हमें सीखा दे
नित कर्म की ही रेखा खींचे
ऐसी दवात-कलम
हाथ थमा दे।
मुझको मुझसे ही मिलाकर
बस एक अच्छा इंसान बना दे।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
उत्तराखंड