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गैरसैंण: उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिबद्री मंदिर के कपाट 14 जनवरी को मकर सक्रांति के दिन श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इस दौरान एक सप्ताह तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। भगवान आदिबद्री मंदिर के कपाट साल में पौष माह के लिए बंद रहते हैं। बीती 15 दिसंबर को मंदिर के कपाट बंद हुए थे और मकर संक्रांति पर भक्तों के लिए दोबारा खोले जाते हैं। यह स्थल न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आदिबद्री मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के एक अवतार हैं। परिसर के अंदर मुख्य मंदिर में भगवान नारायण की एक पूज्यनीय काले पत्थर की मूर्ति है। आदिबद्री को भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है। बद्रीनाथ से पहले आदिबद्री की ही पूजा की जाती है। किंवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु कलियुग में बदरीनाथ जाने से पहले सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों के दौरान आदिबद्री में निवास करते थे। मान्यता के अनुसार बदरीनाथ धाम के दर्शन करने से पहले आदिबद्री के दर्शन करने जरूरी होते हैं, तभी बदरीनाथ की यात्रा सफल होती है. माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इन मंदिरों के निर्माण का समर्थन किया था, जिसका उद्देश्य पूरे देश में हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रसार करना था. किसी जमाने में आदिबद्री मंदिर 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था, लेकिन अब यहां सिर्फ 14 मंदिर रह गए हैं।

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मकर संक्रांति को खोल दिए जाएंगे आदिबद्री मंदिर के कपाट, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का किया जाएगा आयोजन

गैरसैंण: उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिबद्री मंदिर के कपाट 14 जनवरी को मकर सक्रांति के दिन श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इस दौरान एक सप्ताह तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। भगवान आदिबद्री मंदिर के कपाट साल में पौष माह के लिए बंद रहते हैं। बीती 15 दिसंबर को मंदिर के कपाट बंद हुए थे और मकर संक्रांति पर भक्तों के लिए दोबारा खोले जाते हैं। यह स्थल न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आदिबद्री मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के एक अवतार हैं। परिसर के अंदर मुख्य मंदिर में भगवान नारायण की एक पूज्यनीय काले पत्थर की मूर्ति है। आदिबद्री को भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है। बद्रीनाथ से पहले आदिबद्री की ही पूजा की जाती है। किंवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु कलियुग में बदरीनाथ जाने से पहले सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों के दौरान आदिबद्री में निवास करते थे।

मान्यता के अनुसार बदरीनाथ धाम के दर्शन करने से पहले आदिबद्री के दर्शन करने जरूरी होते हैं, तभी बदरीनाथ की यात्रा सफल होती है. माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इन मंदिरों के निर्माण का समर्थन किया था, जिसका उद्देश्य पूरे देश में हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रसार करना था. किसी जमाने में आदिबद्री मंदिर 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था, लेकिन अब यहां सिर्फ 14 मंदिर रह गए हैं।

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