कुमाऊँ
आया होली का त्योहार
प्योली बुरांश और सरसों से
फूट पड़ी रंगों की बौछार।
खेत खलिहान धरा हुई निहाल
द्वार आ गया होली का त्योहार।।
रंगीले शहदीले फूलों पर
बह रहा पीत प्रीत पराग ।
रंग गया सृष्टि का कण-कण
बिखर गया अपनापन का अनुराग।।
रंगीली धरती कर रही सबका स्वागत
कीट पतंगे तितली भौंरे मिलकर।
खा रहे मधुर स्वर में प्रीति के गीत
मंद-मंद पवन के संग घुलकर।।
सूरज का श्वेत प्रकाश लेकर आया
प्रिजमी रंग और अबीर गुलाल।
सबके तन-मन को रंगाता आया
इंद्रधनुषी रंगों का टकसाल।।
एकता अखंडता की डोर से बांधने आई है बासंती बयार।
मानव को मानव से जोड़ने
फूट पड़ा है रंगों का प्यार।।
प्यार का इजहार रंग अबीर गुलाल
भेदभाव का करने आया संहार।
मिटे धरा से आतंक का संत्रास
द्वार आया है होली का त्योहार।।
रतनसिंह किरमोलिया
अणां-गरुड़
(बागेश्वर)