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इस माता के दरबार में मिलता है त्वरित न्याय, जानें कोटगाड़ी माँ के बारे में

आज हम आपको को देवभूमि उत्तराखंड के जनपद पिथौरागढ़ पांखू कस्बे की तरफ ले चलते हैं। जहां माँ भगवती कोटगाड़ी, कोकिला मां का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर की मान्यता न्याय करने वाली देवी के रूप में विख्यात है।

देवी भगवती को समर्पित यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चौकोड़ी से मात्र 18 किलोमीटर दूर पांखू के समीप है। स्थानीय लोगों के अनुसार कोटगाड़ी मूलत: कभी जोशी जाति के ब्राह्मणों का गांव था। वर्तमान में यहां पाठक, उपाध्याय, जोशी आदि सभी जातियों के लोग रहते हैं। कहा जाता है एक दौर में माता कोटगाड़ी यहां स्वयं प्रकट हुई। किसी के प्रति अन्याय हो वह त्वरित न्याय देती।
देवत्व के लिए प्रसिद्ध इस देवभूमि के कोटगाड़ी गांव में कोकिला देवी एक ऐसी देवी हैं, जिनके दरबार में न्यायालय से मायूस हो चुके लोग आकर न्याय की गुहार लगाते हैं। वर्तमान में इस मंदिर के पुजारी पाठक जाति के लोग हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो फैसला कोर्ट में भी नहीं हो पाता था, वह माता के दरबार में बिना वकील के ही हो जाता है। विरोधी दोषी हुआ तो उसे बेहद कड़ी सजा मिल जाती है।

पिथौरागढ़ जनपद में अलग-अलग स्थानों पर पर्यटन एवं धार्मिक स्थलों का विशेष महत्व है। पांखू कस्बे से मात्र दो किमी दूरी पर स्थित मां कोकिला (कोटगाड़ी) के मंदिर को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है। लोग आपसी विवाद, लड़ाई-झगड़े के मामलों में न्यायालय में  जाने के  बजाय मां के दरबार में ले जाना पसंद करते हैं। मंदिर में  सादे कागज में चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई जाती है। मंदिर में टंगी असंख्य अर्जियां इस बात की गवाही देती हैं। जंगलों की रक्षा के लिए लोग पांच, 10 वर्ष के लिए जंगल मां कोकिला को चढ़ा देते हैं। बेहद रमणीक स्थान पर स्थित मां कोकिला के दरबार के चाहने वाले देश, दुनियां में बहुत हैं। साल भर यहां आने वाले भक्तों, श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। उत्तराखंड की पावन धरती में भगवान शंकर सहित 33 कोटि देवताओं के दर्शन होते हैं। आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्वयं को इसी भूमि पर ही पधारकर धन्य मानते हुए कहा कि इस ब्रह्मांड में उत्तराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं है। इस क्षेत्र में शक्तिपीठों की भरमार है। सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्धि देने वाली माता कोकिला देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य है। इन्हें कोटगाड़ी देवी भी कहा जाता है।

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बता दें कि इस देवी का नाम कोर्ट शब्द से ही कोटगाड़ी हुआ। कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से निष्ठा पूर्वक की गई पूजा-आराधना का फल तुरंत मिलता है और अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है। किवदंतियों के अनुसार, जब उत्तराखंड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार खुद को न्याय देने और फल प्रदान करने में अक्षम व असमर्थ मानते हैं और उनकी अधिकार परिधि शिव तत्व में विलीन हो जाती है। तब अनंत निर्मल भाव से परम ब्रह्मांड में स्तुति होती है कोटगाड़ी देवी की। संसार में भटका मानव जब चौतरफा निराशाओं से घिर जाता है और हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है, तो संकल्प पूर्वक कोटगाड़ी की देवी का जिस स्थान से भी सच्चे मन से स्मरण किया जाता है, वहीं से निराशा के बादल हटने शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है।  इस मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेज कर मनौतियां मांगते हैं। मनौती पूर्ण होने पर भी माता को पत्र लिखते हैं और समय व मैया के आदेश पर माता के दर्शन के लिए पधारते हैं।

यहां आने के लिए हवाई सेवा नैनी सैनी हवाई अड्डा पिथौरागढ़,अथवा पंतनगर दोनों जगहों से सुलभ है। पिथौरागढ़ से  कोकिला मंदिर पांखू की दूरी लगभग 55 किलोमीटर है। यहाँ से आप टैक्सी, कार अथवा पैदल भी आसानी से पहुँच सकते हैं। जबकि पंतनगर से लगभग 250 किमी है।
ट्रेन से आने पर निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन हैं यहाँ से  कोकिला मंदिर पांखू (पिथौरागढ़ ) की दूरी लगभग 210 किलोमीटर हैं यहाँ से आप टैक्सी अथवा कार से आसानी से जा सकते हैं। हल्द्वानी से बस अथवा टैक्सी से भी आप मंदिर तक सीधे पहुँच सकते हैं। माता के मंदिर में इन दिनों नवरात्रि के चलते अच्छी खासी भक्तों की भीड़ होती है। आप भी इस मां के दरबार में दर्शन करने एक बार जरूर जाएं।

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