उत्तराखण्ड
स्व.गिरीश तिवारी, गिरदा की 13वीं पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि
नैनीताल,अल्मोड़ा सहित सभी जगह रंगकर्मी , गीतों के माध्यम से उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के प्रमुख जननायक स्व. गिरीश तिवारी गिरदा की आज 13वीं पुण्य तिथि भावभीनी श्रद्धांजलि देकर मनाई गयी।
पढें, गिरदा पर लिखी गई एक कविता–
गिरदा !
वो झोला टोपी कुर्ता चप्पलें कविता गीत तुम्हारे
गिरदा !
न जाने कितने दिनों वर्षों बाद
कब कहां होगी मुलाकात यहाँ तो हमेशा के लिए होली के रंग रंगों के रंगमंच, और नाटकों का यह जीवन ।
फीकी करके गये तुम
रंगमंच के नाटक
कभी काया के लिए
अंततः विजयी रहा
तुम्हारा फक्कड़ भाईचारा
तुम्हारी शैली का जनवाद
हुई है जय तुम्हारी
गूँजते रहेगी तुम्हारी जयकार
तुमसे मुलाकात की उम्मीद
यहां तो कम ही थी,
जहाँ निकल लिए हो
वहाँ जरूर होगी जल्दी होगी,
बातें मुलाकातें
गोष्ठियाँ वार्ताएँ
होलियाँ कविताऐं
जनहित जनमंच जनवाद
दुनियादारी पर खूब सारी चर्चाऐं
चिर अनन्त चर्चाऐं,
वहाँ भी जारी रहेंगे आन्दोलन
वहाँ भी होगी उतराणी
वहाँ भी होंगी
कविता की शामें
गुड़ील भगनील चांचरी की तानें
वहीं वैरा अनन्त साथ
गिरदा ।
जहाँ पहुचे हो वहाँ से नीचे
हमें देखकर हंस लेते हो,
या रो पड़ते हो
अब तो सभी का आदि अन्त
भूत-भविष्य तुम्हें,
नजर आता होगा वहाँ से
कितना अदना होता है आदमी
कितने अंधकारों में भटका
चिपका
या कुछ और…..?
शायद यही तो अद्भुत है
कि उसपार आखें खुल जाती हैं
मगर जुबान बंद
ताकि यह सिलसिला
यों ही चलता रहे या कुछ और…..? सतत्
गिरदा !
तुम्हारा झोला तुम्हारी टोपी
तुम्हारा कुर्ता तुम्हारी चप्पलें
तुम्हारी कविता अहा! बाँज देवदार के दरख्तों को बुरांश के फूलों जैसा वो रंगीला मंजर तुम्हारा
यो ठेठ गीतफे
हिला देने वाला वो स्वर तुम्हारा
तुम्हारा हमारा ।
गिरदा!
अपना ख्याल रखना
उधर भी अग्रज तुम्हीं निकले
जगह बनाए रखना
बारी-बारी, धीरे-धीरे
हम सब तुम्हारे पीछे
चले आ रहे हैं,
वहीं रमेगी फक्कड़ महफिलें
वहीं घोटेंगे भांग गांजा
दारू कभी देशी, कभी अंग्रेजी
देखें उस हद के आगे कौन रोकता है हमें,
कौन मारता है हमें
गिरदा ।
कुछ जल्दी ही निकल लिए तुम,
मगर मैं भी जल्दबाजी से,
बढ़ रहा हूँ तुम्हारी तरफ,
अपनी दरियादिली और
शागिर्दो की दगाबाजी से
खूब थक चुका यहाँ अपने इस हाल में,
ख़ूब गा-गा कर मगन रहना
तुम्हारे मुल्क में आदमी पर आदमी के वहाँ नश्वर शरीर से बीमारियों की जंग नहीं वैरी कभी समाज के लिए
अन्याय की जंग नहीं ठैरी
खूब लड़ी जंग तुमने यहाँ की
–डॉ. महेश पाठक,