राष्ट्रीय
कविता
7वी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर – ‘योग जरूरी क्यों’- एक कविता
योग
बिल्कुल गणित की तरह
अंको का जोड़ +++++
दोनों धनात्मक
तो अंक बड़े
और बेजोड़.
यही योग की प्रवृत्ति
चित्त,देह,भाव की शुद्धि
अंतर बिखरी शक्तियों का जोड़
सकल भाव तो साफ मनोयोग
नही जुड़े तो वियोग.
निश्चित उद्देश्य पूर्ति
के लिए सहयोग
हर जगह में काम आए
इसिलिए उपयोग.
तन स्वस्थ, आनंद जीवन
भाव प्रबल,मन प्रसन्न
योग से सही सद्पयोग
नज़र,नज़ीर बदले दोनों
रहता ये संयोग.
कभी ना थकते
हार ना मानते
योग करते
नित-रोज चलते
रहते वो सदा निरोग.
योग करे ,ज्ञानयोग करें
ना लगे कभी अभियोग
सृजन का स्रोत भी है योग
योग से सिद्ध है हर प्रयोग
मानव से महामानव तक की
यात्रा का महायोग.
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड