उत्तराखण्ड
आखिर क्यों नैनीताल का अस्तित्व पर मंडराने लगा संकट,जाने
नैनीताल के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है। नैनीताल की संवेदनशील पहाड़ियों पर भूस्खलन शुरू हो गया है। बालियानाला, चाइनापीक, मालरोड, कैलाखान, ठंडी सड़क, टिफिनटॉप सात नंबर क्षेत्र में भूस्खलन चौतरफा खतरे का संकेत दे रहे हैं।भूवैज्ञानिक भी इसे संकट की घंटी बता रहे हैं।तीन दिनों पहले नैनीताल के सात नंबर क्षेत्र में भारी भूस्खलन हुआ। जिसमें कुछ दरख्त गिर गए तो दो मकान क्षतिग्रस्त हो गए। सात नंबर क्षेत्र उसी आल्मा की पहाड़ी में आता है जहां नैनीताल के इतिहास में सबसे भयानक भूस्खलन हुआ था। 18 सितंबर 1880 के भूस्खलन में तो 151 जिंदगी काल के गाल में समा गई थीं।
शहर की बसासत के बाद माना जाता है कि 1867 में पहली भूस्खलन की घटना हुई थी।नैनीताल के नीचे स्थित बलियानले में 150 से भी अधिक वर्षों से भूस्खलन आज भी जारी है। बीते वर्ष शहर की सबसे ऊंची चोटी चाइनापीक में एक बार फिर भारी भूस्खलन हुआ था। साथ ही पहाड़ी के एक बड़े हिस्से में करीब छह इंच चौड़ी दरार उभर आई। इधर टिफिनटॉप में भी भूस्खलन होने लगा है। भूस्खलन और पहाड़ी में दरारे उभरने से ऐतिहासिक ब्रिटिशकालीन डोरोथी सीट का अस्तित्व भी खतरे में नजर आ रहा है।नैनीताल में 1880 के भूस्खलन हुआ था था,
तब शहर की आबादी 10 हजार से भी कम थी। तब अंग्रेजों ने कमेटियां गठित कर भूस्खलन के कारणों को जानने के साथ ही इसकी रोकथाम की कवायद शुरू कर दी थी। जिसके बाद शहर के कई क्षेत्रों में भवन निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था।अंग्रेजों ने शेर का डांडा पहाड़ी पर तो घास काटने, चारागाह के रूप में उपयोग करने और बागवानी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
भूस्खलन की रोकथाम के लिए विभिन्न क्षेत्रों में वृहद स्तर पर पौधारोपण भी किया गया। इधर अन्य क्षेत्रों में छुटपुट भवन निर्माण और विकास कार्य चलते रहे।आजादी के बाद नैनीताल की दशा ही बदल गयी। 70-80 के दशक के बाद शहर में अंधाधुंध भवन निर्माण हुए। तेजी से बसासत बढ़ी। नियम कायदे की धज्जियां उउ़ती रहीं। आज भी प्रतिबंध के बावजूद शहर में अवैध रूप से निर्माण कार्य जारी है, इसके लिए हरे पेड़ों तक को काट दिया जाता है।