उत्तराखण्ड
देश की पहली योग नीति के साथ उत्तराखंड ने संभाली वैश्विक नेतृत्व की कमान, योग के नाम होगी देवभूमि
देहरादून में इस बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस कुछ अलग अंदाज़ में मनाया गया है। वजह है कि इसी दिन उत्तराखंड सरकार ने देश की पहली योग नीति को लागू कर दिया है। योग की ज़मीन कहे जाने वाले इस राज्य ने अब इसे लेकर बाकायदा एक नियमावली तैयार कर ली है। राजधानी देहरादून से लेकर भराड़ीसैंण तक इसका असर दिखा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शीतकालीन राजधानी गैरसैंण के विधानसभा भवन में योग नीति की अधिसूचना जारी की। इसके साथ ही यह नीति पूरे उत्तराखंड में लागू मानी गई है।
इस नीति को तैयार करने में दो साल का वक्त लगा। साल 2023 से ही आयुष विभाग इसके मसौदे पर काम कर रहा था। पहले जब ड्राफ्ट शासन को भेजा गया तो कुछ खामियों के चलते वह लौट गया था। लेकिन इसके बाद विभाग ने दोबारा तैयारी शुरू की और विशेषज्ञों की मदद ली। तमाम विभागों और हितधारकों से राय मशविरा किया गया। और आखिरकार मई 2025 में यह मसौदा कैबिनेट के पास पहुंचा। फिर 28 मई को मंत्रीमंडल ने इसे हरी झंडी दे दी। अब 21 जून को यह नीति औपचारिक रूप से अस्तित्व में आ चुकी है।
इस नीति के पीछे सरकार की मंशा साफ है कि उत्तराखंड को योग और वैलनेस की ग्लोबल राजधानी के तौर पर स्थापित किया जाए। यही वजह है कि इसमें कई बड़े लक्ष्य तय किए गए हैं। जैसे कि साल 2030 तक पांच नए योग हब बनाए जाएंगे। जागेश्वर, मुक्तेश्वर, व्यास घाटी, टिहरी झील और कोलीढेक झील को इसके लिए चुना गया है। साथ ही मार्च 2026 तक सभी आयुष हेल्थ और वेलनेस सेंटर्स में योग सेवाएं शुरू करने का भी लक्ष्य है।
सरकार का दावा है कि योग नीति से रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे। अनुमान है कि राज्य में 13 हजार से ज़्यादा लोगों को इससे काम मिलेगा। दो हजार पांच सौ योग शिक्षक सर्टिफिकेशन बोर्ड से प्रमाणित होंगे। और करीब दस हजार अनुदेशक होमस्टे, होटल, रिसोर्ट जैसी जगहों पर काम कर सकेंगे।
योग नीति का मकसद सिर्फ स्वास्थ्य नहीं है। यह राज्य में पर्यटन, शिक्षा, शोध और संस्कृति से भी जुड़ता है। इस नीति में योग निदेशालय बनाने की बात है जो पूरे कामकाज की निगरानी करेगा। यह संस्था योग संस्थानों का पंजीकरण कराएगी। योग केंद्रों की गुणवत्ता को देखेगी और प्रमाणन बोर्ड से उन्हें मान्यता दिलाएगी। साथ ही इसमें रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए हर रिसर्च पर दस लाख रुपये तक की ग्रांट देने की व्यवस्था भी की गई है।
सरकार की योजना है कि मार्च 2028 तक पंद्रह से बीस राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ समझौते किए जाएं। योग केंद्र खोलने के लिए सब्सिडी भी तय की गई है। पहाड़ में खोलने पर पचास फीसदी तक और मैदानी इलाके में पच्चीस फीसदी तक की मदद दी जाएगी। साल भर में अधिकतम पांच करोड़ की सब्सिडी देने का लक्ष्य रखा गया है।
राज्य सरकार आने वाले पांच साल में इस नीति पर कुल पैंतीस करोड़ रुपये खर्च करेगी। इसके लिए निदेशालय में निदेशक से लेकर विशेषज्ञ और तकनीकी स्टाफ तक की नियुक्ति की जाएगी। इसके अलावा एक उच्च स्तरीय समिति इस पूरी नीति की निगरानी और समीक्षा करेगी।
योग को लेकर उत्तराखंड की यह पहल देश भर में एक मिसाल बन सकती है। क्योंकि यहां सिर्फ योग की बात नहीं की जा रही है बल्कि इसे ज़मीन पर उतारने की तैयारी भी पूरी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि बाकी राज्य भी इस दिशा में कब कदम बढ़ाते हैं।

