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उत्तराखण्ड

यहां के 75 इलाकों का पानी पीने लायक नहीं, चिंताजनक रिपोर्ट

देहरादून के अलग-अलग इलाकों में रह रहे हजारों लोगों के साथ यही हो रहा है। राजधानी के ज्यादातर इलाकों में लोग जो पानी पी रहे हैं, वो सेहत के लिहाज से पीने लायक नहीं है। यहां तक कि कई विधायकों और मंत्रियों के निवासों तक में पानी की गुणवत्ता मानकों के अनुसार नहीं है। ये बात सोसायटी ऑफ एन्वायरनमेंटल कंजर्वेशन साइंटिस्ट यानी SPECS के सर्वे में पता चली है। SPECS देहरादून बेस्ड एनजीओ है। यह संस्था 1990 से देहरादून में स्वच्छ पेयजल के मोर्चे पर काम कर रही है और “जन-जन को शुद्ध जल अभियान” चला रही है।

सर्वे के लिए एनजीओ ने अलग-अलग इलाकों से पेयजल के 125 सैंपल जुटाए गए थे। जांच में 90 फीसदी सैंपल सुरक्षित नहीं पाए गए। संस्था के सेक्रेट्री मोहन शर्मा के अनुसार पानी के कई सैंपलों में क्लोरीन की अधिकता मिली। पेयजल में क्लोरीन की मानक मात्रा 0.2 mg/l होनी चाहिए, लेकिन कलेक्ट्रेट और सचिवालय के पास से लिए गए सैंपल में यह मात्रा 1 mg/l से ज्यादा पाई गई। इसी तरह सैंपलों में कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे खनिजों की मात्रा 326 से 500 मिलीग्राम प्रति लीटर मिली, जबकि यह मात्रा 180 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। डोभालवाला, इंदरेश नगर, तपोवन एन्क्लेव जैसे क्षेत्रों में क्लोरीन मानक के अनुसार पाया गया। जबकि राजपुर रोड, डीएम कैंप दफ्तर समेत कुल 75 जगहों पर पेयजल की गुणवत्ता मानक के मुताबिक नहीं मिली।

अब ज्यादा क्लोरीन मिले पानी के सेवन के खतरे भी जान लें। इससे पथरी, लिवर, किडनी, आंखों और जोड़ों संबंधी परेशानी हो सकती है। बालों और स्किन पर बुरा असर पड़ता है। फीकल कॉलिफॉर्म पेट में कीड़ों, हैजा, दस्त, पीलिया और हेपेटाइटिस बी के जोखिम को बढ़ाता है। लंबे समय तक दूषित पानी के सेवन से पेट के गंभीर रोगों के साथ ही कैंसर व अल्सर जैसी बीमारी हो सकती है। शुक्रवार को एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि कई घरों में वॉटर फिल्टर जरूर लगे हैं, लेकिन शहर की बड़ी आबादी यह सिस्टम अफोर्ड नहीं कर सकती, इसलिए हमें मामले की गंभीरता को समझना होगा।

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