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कुमाऊँ

ई रिक्शा ने ली अंग्रेजों के समय से चल रहे रिक्शा की जगह

नैनीताल। सरोवर नगरी नैनीताल की सैर, रौनक यहां आने वाले पर्यटकों को खूब लुभाता है। खूबसूरत वादियों के बीच माल रोड में सदियों से चलने वाले रिक्शा यहां की शान हैं। रिक्शा सवारी का यह पुराना अंदाज अब सिर्फ इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जायेगा। इनकी जगह ई-रिक्शा ले चुके हैं, अंतर इतना ही है रिक्शा बिना शोरगुल किये ,ट्रिंग-ट्रिंग चलता था, ई रिक्शा कुछ तो शोर करेगा ही। साइकिल रिक्शा सेवा की समाप्ति के बाद नैनीताल की माल रोड में अब आधुनिक ई रिक्शा दौड़ेंगे। अंग्रेजों के समय से ही नैनीताल में सन 1846 के दौरान हाथ से बने, हाथ रिक्शा की शुरुआत हुई थी। इतने वर्षों में नैनीताल के रिक्शा ने अंग्रेजी हुकूमत से लेकर भारत की आजादी और न जाने कितने ऐतिहासिक दिन देखे।उस दौर में माल रोड पर लोग दो आने किराए पर साइकिल रिक्शा की सवारी किया करते थे, वर्तमान में रिक्शे की सवारी 20 रुपये पहुंचने के बाद बंद होने जा रही है। बता दें कि नैनीताल की खोज 1839 में ब्रिटिश नागरिक पी बैरन ने की थी। 1846 में यहां अंग्रेजों ने पर्यटन की शुरुआत की। उसी वक्त तल्लीताल से मल्लीताल तक ले जाने के लिए अंग्रेजी अफसरों ने रिक्शा शुरू किया था। वर्ष 1858 में मालरोड में झंपानी की शुरुआत हुई। इसे हाथ रिक्शा, राम रथ, विलियम एंड बरेली टाइप भी कहा जाता था। फिर आया साल 1942, ये वो साल था जब नैनीताल की सड़कों पर साइकिल रिक्शा नजर आने लगे।

करीब 1970 के दशक तक भी नैनीताल में हाथ रिक्शा का चलन था। इसके बाद इसकी जगह धीरे-धीरे साइकिल रिक्शा ने ले ली। शहर के बुजुर्ग के मुताबिक शुरुआत में रिक्शा का किराया दो आना प्रति सवारी तय किया गया। था, साल  में ये चार आना हुआ और आज किराया 20 रुपये तक पहुँच गया। इतिहास खुद को एक बार फिर दोहराने वाला है। जिस तरह 70 के दशक के बाद हाथ रिक्शा की जगह साइकिल रिक्शा ने ली थी, उसी तरह अब शहर में साइकिल रिक्शा की जगह ई-रिक्शा दौड़ते नजर आएंगे।

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